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धर्म प्रचार]
भगवान् श्री पार्श्वनाथ
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है । सिकन्दर महान और चीनी यात्री फाहियान, नत्मांग के समय में उत्तर. पश्चिम सीमाप्रान्त एवं अफगानिस्तान में विशाल संख्या में जैन मुनियों के पाये जाने का उल्लेख मिलता है, वह तभी संभव हो सकता है, जबकि वह क्षेत्र भगवान पार्श्वनाथ का विहारस्थल माना जाय ।'
सात सौ ई० में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने तथा उसके भी पूर्व सिकन्दर ने मध्य एशिया के “कियारिशि" नगर में बहुसंख्यक निर्ग्रन्थ संतों को देखा था । अतः यह अनमान से सिद्ध होता है कि मध्य एशिया के समरकन्द, बल्ल आदि नगरों में जैन धर्म उस समय प्रचलित था । आधुनिक खोज से यह प्रमाणित हो चुका है कि पार्श्वनाथ के धर्म का उपदेश सम्पूर्ण पार्यावर्त में व्याप्त था। पार्श्वनाथ एक बार ताम्रलिप्ति से चलकर कोपकटक पहुंचे थे और उनके वहां प्राहार ग्रहण करने से वह धन्यकटक कहलाने लगा। अाजकल वह "कोपारि" कहा जाता है । इन प्रदेशों में भगवान् पार्श्वनाथ की मान्यता आज भी बनी हुई है। बिहार के रांची और मानभूमि आदि जिलों में हजारों मनुष्य आज भी केवल पार्श्वनाथ की उपासना करते हैं और उन्हीं को अपना इष्टदेव मानते हैं । वे आज सराक (श्रावक) कहलाते हैं ।
लगभग सत्तर (७०) वर्ष तक भगवान पार्श्वनाथ ने देश-देशान्तर में विचरण किया और जैन धर्म का प्रचार किया।
भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता भगवान् पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष थे, यह आज ऐतिहासिक तथ्यों से असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो चुका है । जैन साहित्य ही नहीं, बौद्ध साहित्य से भी भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता प्रमाणित है।
बौद्ध साहित्य के उल्लेखों के आधार पर बुद्ध से पहले निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व प्रमाणित करते हुए डॉ० जेकोबी ने लिखा है-“यदि जैन और बौद्ध सम्प्रदाय एक से ही प्राचीन होते, जैसा कि बद्ध और महावीर की समकासीनता तथा इन दोनों को इन दोनों संप्रदायों का संस्थापक मानने से अनुमान किया जाता है, तो हमें आशा करनी चाहिये कि दोनों ने ही अपने अपने साहित्य में अपने प्रतिद्वन्द्वी का अवश्य ही निर्देश किया होता, किन्तु बात ऐसी नहीं है। बौद्धों ने तो अपने साहित्य में, यहां तक कि त्रिपटकों में भी, निग्रंथों का बहुतायत से उल्लेख किया है पर जैनों के प्रागमों में बौद्धों का कहीं उल्लेख नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बौद्ध, निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय को एक प्रमुख सम्प्रदाय मानते थे, किन्तु निर्ग्रन्थों की धारणा इसके विपरीत थी और वे अपने प्रतिद्वन्द्वी
१ पार्श्वनाथ चरित्र सर्ग १५-७६-८५
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