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________________ संघ-स्थापना] भगवान् श्री पार्श्वनाथ ४६५ श्री विनय विजय ने लिखा है कि दो गणधर अल्पायु वाले थे' अत: सूत्र में पाठ का ही निर्देश किया गया है। केवलज्ञान की प्राप्ति के पश्चात जब भगवान का प्रथम समवसरण हुअा, सहस्रों नर-नारियों ने प्रभु की त्याग-वैराग्यपूर्ण वाणी को श्रवण कर श्रमरणदीक्षा ग्रहण की। उनमें आर्य शुभदत्त आदि विद्वानों ने प्रभु से त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त कर चौदह पूर्व की रचना की और गणनायक-गणधर कहलाये । श्री पासनाह चरिउं के अनुसार गणधरों का परिचय निम्न प्रकार है : (१) शुभदत्त-ये भगवान पार्श्वनाथ के प्रथम गणधर थे। इनकी जन्मस्थली क्षेमपुरी नगरी थी। पिता का नाम धन्य एवं माता का नाम लीलावती था । सम्भूति मुनि के पास इन्होंने श्रावकधर्म ग्रहण किया और माता-पिता के परलोकवासी होने पर संसार से विरक्त होकर बाहर निकल गये और आश्रमपद उद्यान में आये, जहां कि भगवान् पार्श्वनाथ का प्रथम समवसरण हुआ। भगवान् की देशना सुनकर उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की और वे प्रथम गणधर बन गये। ..(२) आर्य घोष-पार्श्वनाथ के दूसरे गणधर का नाम आर्य घोष था। ये राजगृह नगर के निवासी अमात्यपुत्र थे। जिस समय भगवान को केवलज्ञान हुआ, वे अपने स्नेही साथियों के साथ वहाँ आये और दीक्षा लेकर गणधर पद के अधिकारी हो गये। (३) वशिष्ठ-भगवान् पार्श्वनाथ के तीसरे गणधर वशिष्ठ हुए। ये कम्पिलपुर के अधीश्वर महाराज महेन्द्र के पुत्र थे। बाल्यावस्था से ही इनकी रुचि प्रव्रज्या ग्रहण करने की ओर रही। संयोग पाकर भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम समवसरण में उपस्थित हुए और वहीं संयम ग्रहण करके तीसरे गणधर बन गये। . (४) आर्य ब्रह्म-भगवान् पार्श्वनाथ के चौथे गणधर आर्यब्रह्म हुए। ये सुरपुर नगर के महाराजा कनककेतु के पुत्र थे। इनकी माता शान्तिमती थीं। भगवान् पार्श्वनाथ को केवलज्ञान होने पर ये भी अपने साथियों सहित वंदन करने उनके पास पहुंचे और देशना श्रवण कर प्रवजित हो गये । " (५) सोम-भगवान पार्श्वनाथ के पांचवें गणधर सोम थे। क्षितिप्रतिष्ठित नगर के महाराजा महीधर के ये पुत्र थे । इनकी माता का नाम रेवती १ द्वौ अल्पायुष्कत्वादि कारणान्नोक्तौ इति टिप्पणके व्याख्यातम् । [कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका, पृष्ठ ३८१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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