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________________ पौर विवाह भगवान् श्री पार्श्वनाथ ४८७ मूल आगम समवयांग और कल्पसूत्र में विवाह का वर्णन नहीं है । श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के कुछ प्रमुख ग्रन्थों में यह उल्लेख मिलता है कि वासुपूज्य, मल्ली, नेमि, पाव और महावीर तीथंकर कुमार अवस्था में दीक्षित हए और उन्नीस (१६) तीर्थंकरों ने राज्य किया। इसी आधार पर दिगम्बर परम्परा इन्हें अविवाहित मानती है। श्वेताम्बर परम्परा के प्राचार्यों का मन्तव्य है कि कुमारकाल का अभिप्राय यहां युवराज अवस्था से है। जैसा कि शब्दरत्न-कोष और वैजयन्ती में भी कुमार का अर्थ युवराज किया है।' पार्श्व को विवाहित मानने वालों की दृष्टि में वे पिता के प्राग्रह से विवाह करने पर भी भोग-जीवन से अलिप्त रहे और तरुण एवं समर्थ होकर भी उन्होंने राज्यपद स्वीकार नहीं किया। इसी कारण उन्हें कुमार कहा गया है। किन्तु दूसरे प्राचार्यों की दृष्टि में वे अविवाहित रहने के कारण कुमार कहे गये हैं । यही मतभेद का मूल कारण है । नाग का उद्धार लोकानुरोध से पार्श्वनाथ ने प्रभावती के साथ वन, उद्यान आदि की क्रीड़ा में कितने ही दिन बिताये । __ एक दिन प्रभु पार्श्वनाथ राजभवन के झरोखे में बैठे हए कतहल से वाराणसी पुरी की छटा निहार रहे थे। उस समय उन्होंने सहस्रों नर-नारियों को पत्र, पुष्पादि के रूप में प्रर्चा की सामग्री लिये बड़ी उमंग से नगर के बाहर जाते देखा। जब उन्होंने इस विषय में अनचर से जिज्ञासा की तो ज्ञात हा कि नगर के उपवन में कमठ नाम के एक बहुत बड़े तापस आये हुए हैं। वे बड़े तपस्वी हैं और सदा पंचाग्नि-तप करते हैं । यह मानव-समुदाय उन्हीं की सेवा-पूजा के लिये जा रहा है। अनुचर की बात सुनकर कुमार भी कतुहलवश तापस को देखने चल पड़े। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि तापस धनी लगाये पंचाग्नि-तप तप रहा है। उसके चारों ओर अग्नि जल रही है और मस्तक पर सूर्य तप रहा है । झुण्ड के १ कुमारो युवराजेश्ववाहके बालके शुके । -शब्दरत्न समन्वय कोष, पृ. २६८ कुमारस्स्याद्रहे वाले बरणेऽश्वानुचारके ।।२८।। युवराजे.... -वैजयन्ती कोष, पृ० २५६ २ जनोपरोधादुवानक्रीड़ा शैलादिषु प्रमुः । रममारणस्तया साधं, वासरानत्यवाहयत् ।।२११॥ [त्रिषष्टि श० पु०, १०, पर्व ६, स० ३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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