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________________ भगवान् श्री पार्श्वनाथ भगवान् मरिष्टनेमि (नेमिनाथ) के पश्चात् तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ हए । पापका समय ईसा से पूर्व नवी-दशवीं शताब्दी है । आप भगवान् महावीर से दो सौ पचास वर्ष पूर्व हुए। ऐतिहासिक शोध के आधार पर आज के ऐतिहासिक विषय के विद्वान् भगवान पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक पुरुष मानने लगे हैं। ' मेजर जनरल फलांग ने ऐतिहासिक शोध के पश्चात् लिखा है-"उस काल में सम्पूर्ण उत्तर भारत में एक ऐसा प्रतिव्यवस्थित, दार्शनिक, सदाचार एवं तप-प्रधान धर्म, अर्थात् जैनधर्म, अवस्थित था, जिसके आधार से ही ब्राह्मण एवं बौद्धादि धर्म संन्यास बाद में विकसित हुए । मार्यों के गंगा-तट एवं सरस्वती. तट पर पहुंचने से पूर्व ही लगभग बाईस प्रमुख सन्त अथवा तीर्थंकर जैनों को धर्मोपदेश दे चुके थे, जिनके बाद पार्श्व हुए और उन्हें अपने उन समस्त पूर्व तीर्थकरों का प्रथवा पवित्र ऋषियों का ज्ञान था, जो बड़े-बड़े समयान्तरों को लिए हुए पहले हो चुके थे। उन्हें उन अनेक धर्मशास्त्रों का भी ज्ञान था जो प्राचीन होने के कारण पूर्व या पुराण कहलाते थे और जो सुदीर्घकाल से मान्य मुनियों, वानप्रस्थों या वनवासी साधुनों की परम्परा में मौखिक द्वार से प्रवाहित होते पा रहे थे। डॉ. हर्मन जैकोबी जैसे लब्धप्रतिष्ठ पश्चिमी विद्वान् भी भगवान् पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं। उन्होंने जैनागमों के साथ ही बौद्ध पिटकों के प्रकाश में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पार्श्वनाथ ऐतिहासिक व्यक्ति थे। डॉ. हर्मन जैकोबी के प्रस्तुत कथन का समर्थन अन्य अनेक इतिहासविज्ञों ने भी किया है । डॉ० 'वासम' के अभिमतानुसार भगवान् महावीर बौद्ध पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में उट्ट कित किये गये हैं, एतदर्थ उनकी ऐतिहासिकता में सन्देह नहीं रह जाता। १ भारतीय इतिहास : एक दृष्टि : डॉ. ज्योतिप्रसाद, पृष्ठ १४६ 2 The Sacred Books of the East Vol. XLV, Introduction, page 21 "That Parsva was a historical person, is now admitted by all as very probable..........." 3 The Wonder that was India (A. L. Basham B.A., Ph.D., F. R. A. S.) Reprinted 1956, P.287-288 : "As he (Vardhaman Mahavira) is referred to in the Buddhist Scriptures as one of the Buddha's chief opponents, his historicity is beyond doubt...Parswa was remembered as twenty-third of the twenty-four great teachers or Tirthakaras (Ford makers) of the Jaina faith." - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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