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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [प्राचीन इ० की एक भग्न कड़ी
काल उपलब्ध होता है। इसके साथ ही एक उल्लेखनीय बात यह है कि इन तिरेसठ श्लाघ्य पुरुषों का जो समय एक प्रागम में दिया गया है, वही समय अन्य प्रागमों एवं सभी प्राचीन ग्रन्थों में दिया हया है। अतः ऐसी दशा में जैन परम्परा के साहित्य में दिये गये इनके जीवनकाल के सम्बन्ध में शंका के लिये अवकाश नहीं रह जाता।
भारतवर्ष की इन दो अत्यन्त प्राचीन परम्परात्रों के मान्य ग्रन्थों में जो अधिकांशतः समानता रखने वाला ब्रह्मदत्त का वर्णन उपलब्ध है, उसके सम्बन्ध में इतिहासज्ञों द्वारा खोज की जाय तो निश्चित रूप से यह भारतीय प्राचीन इतिहास की शृखला को जोड़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
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