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________________ एक भग्न कड़ी] भगवान् श्री अरिष्टनेमि ४७३ (६) ब्रह्मदत्त पशु-पक्षियों की भाषा समझता था, इस बात का उल्लेख दोनों परम्परामों में है। वैदिक परम्परा : ततः पिपीलिकारुतं, स शुश्राव नराधिपः । कामिनी कामिनस्तस्य, याचतः क्रोशतो भृशम् ।।३।। श्रुत्वा तु याच्यमानां तां, क्रुद्धां सूक्ष्मां पिपीलिकाम् । ब्रह्मदत्तो महाहासमकस्मादेव चाहसत् ।।४॥ तथा श्लोक ७ से १०। (हरिवंश, पर्व १, अ० २४) जैन परम्परा : गृहगोलं गृहगोला, तत्रोवाचानय प्रिय । राज्ञोऽङ्गरागमेतं मे, पूर्यते येन दोहदः ॥५५२।। प्रत्यचे गहगोलोऽपि, कार्य किं मम नात्मना। भाषां ज्ञात्वा तयोरेवं, जहास वसुधाधिपः ।।५५३।। (त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व ६, सर्ग १) इसके अतिरिक्त वैदिक परम्परा में पूजनिका नाम की एक चिड़िया के द्वारा ब्रह्मदत्त के पुत्र की आँखें फोड़ डालने का उल्लेख है, तो जैन परम्परा के ग्रन्थों में ब्रह्मदत्त के परिचित एक ब्राह्मण के कहने से अचूक निशाना मारने वाले किसी गड़रिये द्वारा स्वयं ब्रह्मदत्त की आँखें फोड़ने का उल्लेख है। इन कतिपय समान मान्यतामों के होते हुए भी ब्रह्मदत्त के राज्यकाल के सम्बन्ध में दोनों परम्परामों के ग्रंथों में बड़ा अन्तर है। हरिवंश' में महाभारतकाल से बहुत पहले ब्रह्मदत्त के होने का उल्लेख है; ' पर इसके विपरीत जैन परम्परा के प्रागम व अन्य ग्रन्थों में पाण्डवों के निर्वाण के बहुत काल पश्चात् ब्रह्मदत्त के होने का उल्लेख है।। जैन परम्परा के प्रागमों और प्राचीन ग्रन्थों में प्रत्येक तीर्थकर, चक्रवर्ती बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव के पूरे जीवनचरित्र के साथ-साथ इन सब का १ प्रतीपस्य तु राजर्षस्तुल्यकालो नराधिप । पितामहस्य मे राजन्, बभूवेति मया श्रुतम् ।।११।। ब्रह्मदत्तो महाभागो, योगी राजर्षिसत्तमः । रुतमः सर्वभूतानां, सर्वभूतहिते रतः ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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