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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[प्राचीन इतिहास की
सोहम्मसुरकप्पे पउमगुम्मे विमारणे सुरविलासिणीकलिज्ज मारणरणाड़यविही दिट्ठा। सुमरिमो प्रत्तणो पुग्वभवो तो मुच्छावसमउलमाण लोयरणो सुकुमारतरणीसह वेविरसरीरो तक्खणं चैव धरायलम्मि विड़िओो ति ।'
( चउवन्न महापुरिस चरियं पृ० २११ )
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(४) ब्रह्मदत्त के पूर्वभवों का वर्णन दोनों परम्पराओं द्वारा एक दूसरे से काफी मिलता जुलता दिया गया है।
वैदिक परम्परा :
सप्त व्याधाः दशार्णेषु, मृगा कालिंजरे गिरौ । चक्रवाकाः शरद्वीपे, हंसा सरसि मानसे ||२०|| तेऽभिजाता कुरुक्षेत्रे, ब्राह्मणा वेदपारगाः । प्रस्थिताः दीर्घमध्वानं, यूयं किमवसीदथ ||२१||
जैन परम्परा :
( हरिवंश पर्व १, प्रध्याय २५)
दासा दसपणे प्रासी, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीराए सोवागा कासिभूमिए ||६|| देवाय देवलोयम्मि, आसी भ्रम्हे महिड्डिया । इमा णो छट्ठिया जाई प्रन्नमन्नेरण जा विणा ||७||
( उत्तराध्ययन सूत्र, प्र० १३ )
(५) ब्रह्मदत्त का विवाह एक ब्राह्मण कन्या के साथ हुआ था, इस सम्बन्ध में भी दोनों परम्पराम्रों की समान मान्यता है ।
वैदिक परम्परा :
ब्रह्मदत्तस्य भार्या तु देवलस्यात्मजाभवत् । प्रसितस्य हि दुर्धर्षा, सन्मतिर्नाम नामतः ।। २६ ।।
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( हरिवंश पर्व १, अ० २३)
जैन परम्परा :
ताव य एक दियवरमंदिराम्रो पेसिएण ग्गिंतूरण दासचेड़एण भणिया प्रम्हे एह भुजह ति । भोय गावसारणम्मि तम्रो तम्म चैव दिणे जहाविहववित्यरेरण वत्तं पाणिग्गणं ।
( चउवन महापुरिस चरियं पृ० २२१ )
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