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ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि
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प्रस्फुटित होने लगी । कामोन्माद में अन्धा ब्राह्मण परिवार मां, बहिन, बेटी, पुत्रवधू, पिता, पुत्र, भाई आदि अगभ्य सम्बन्ध को भूल गया । उस ब्राह्मण ने और उसके पुत्र ने अपने परिवार की सब स्त्रियों के साथ पशु की तरह कामक्रीड़ा करते हुए सारी रात्रि व्यतीत की।
प्रातःकाल होते ही जब उस भोजन का प्रभाव कुछ कम हुमा तो ब्राह्मणपरिवार का कामोन्माद थोड़ा शान्त हुआ और परिवार के सभी सदस्य अपने घृणित दुष्कृत्य से लज्जित हो एक दूसरे से कतराते हुए अपना मुंह छुपाने लगे।
"अरे! इस दुष्ट राजा ने अपने दूषित अन्न से मेरे सारे परिवार को घोर पापाचार में प्रवृत्त कर पतित कर दिया।" यह कहता हुमा ब्राह्मण अपने पाशविक कृत्य से लज्जित हो नगर के बाहर चला गया।
वन में निरुद्देश्य इधर-उधर भटकते हुए ब्राह्मरण ने देखा कि एक चरवाहा पत्थर के छोटे-छोटे ढेलों को गिलोल से फेंक कर वटवृक्ष के कोमल और कच्चे पत्ते पृथ्वी पर गिरा कर अपनी बकरियों को चरा रहा है।
गड़रिये की अचूक और अद्भुत निशानेबाजी को देख कर ब्राह्मण ने सोचा कि इसके द्वारा ब्रह्मदत्त से अपने वैर का बदला लिया जा सकता है। ब्राह्मण ने उस गड़रिये को धन दिया और कहा-"नगर में राजमार्ग पर श्वेत छत्र-चवरधारी जो व्यक्ति हाथी की सवारी किये निकले उसकी आंखें एक साथ दो पत्थर की गोलियों के प्रहार से फोड़ देना।"
"अपने कृत्य के दुष्परिणाम का विचार किये बिना ही गड़रिये ने नगर में जाकर, राजपथ से गजारूढ़ हो निकलते हुए ब्रह्मदत्त की दोनों प्रांखें एक साथ गिलोल से दो गोलियाँ फेंक कर फोड़ डालीं।"
"तत्क्षण राजपुरुषों द्वारा गड़रिया पकड़ लिया गया। उससे यह ज्ञात होने पर कि इस सारे दुष्कृत्य का सूत्रधार वही ब्राह्मण है, जिसे गत दिवस भोजन कराया गया था, ब्रह्मदत्त बड़ा क्रुद्ध हुप्रा । उसने उस ब्राह्मण को परिवार सहित मरवा डाला। फिर भी अन्धे ब्रह्मदत्त का क्रोध शान्त नहीं हमा। वह बार-बार सारी ब्राह्मण जाति को ही कोसने लगा एवं नगर के सारे ब्राह्मणों और अपने पुरोहितों तक को चुन-चुन कर उसने मौत के घाट उतार दिया।" १ 'कण उण उवाएण पच्चु (पच्च) वयारो परवइणो कीरई ?" त्ति झायमाणेण को बहुहिम (उ) वरियव्य विण्णासेहिं गुलियाषणुविक्खेवरिणतणो वयंसो । कयसभावाइसयस्स य साहिमो रिणयया हिप्पाप्रो । तेरणावि पडिवण्णं सरहसं ।
[चउवन्न महापुरिस चरियं, पृ० २४३]
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