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[ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती
भगवान् श्री अरिष्टनेमि समझ कर यदि आपने किसी और के सम्मुख उसे प्रकट कर दिया तो आपके सिर के सात टुकड़े हो जायेंगे।"
ब्रह्मदत्त ने सावधानी रखने का आश्वासन देते हुए नागराज के प्रति आभार प्रकट किया और नागराज भी ब्रह्मदत्त का अभिवादन करते हुए तिरोहित हो गया।
एक दिन ब्रह्मदत्त अपनी अतीव प्रिया महारानी के साथ प्रसाधन-गह में बैठा हुआ था । उस समय नर-घरोली और नारी-घरोली अपनी बोली में बात करने लगे। गर्भिणी घरोली अपने पति से कह रही थी कि वह उसके दोहद की प्रति के लिए ब्रह्मदत्त का अंगराग ला दे । नर-घरोली उससे कह रहा था"क्या तुम मुझसे ऊब चुकी हो, जो जानबूझ कर मुझे मौत के मुंह में ढकेल रही हो?"
ब्रह्मदत्त घरोली दम्पति की बात समझ कर सहसा अट्टहास कर हँस पड़ा। रानी ने अकस्मात् हँसने का कारण पूछा ।
ब्रह्मदत्त जानता था कि यदि उसने उस रहस्य को प्रकट कर दिया. तो तत्काल मर जायगा, अतः वह बड़ी देर तक अनेक प्रकार की बातें बना कर उसे टालता रहा । रानी को निश्चय हो गया कि उस हँसी के पीछे अवश्य ही कोई बड़ा रहस्य छिपा हुआ है और उसके स्वामी उससे वह छिपा रहे हैं । रानी ने नारीहठ का आश्रय लेते हुए दृढ़ स्वर में कहा-"महाराज ! आप अपनी प्रारणप्रिया से भी कुछ छिपा रहे हैं, यह मुझे इस जीवन में पहली ही बार अनभव हुअा है । यदि आप मुझे हँसी का सही कारण नहीं बतायेंगे तो मैं इसी समय अपने प्राण दे दूंगी।"
ब्रह्मदत्त ने कहा-"महारानी! मैं तुमसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहता पर केवल यही एक ऐसा रहस्य है कि यदि इसे मैंने प्रकट कर दिया तो तत्काल मेरे प्राण निकल जायेंगे।"
रानी ने ब्रह्मदत्त की बात पर अविश्वास करते हुए निश्चयात्मक स्वर में कहा-"यदि ऐसा हुआ तो आपके साथ ही साथ मैं भी अपने प्राण दे दूंगी, पर इस हँसी का कारण तो मालूम करके ही रहूँगी।"
रानी में अत्यधिक आसक्ति होने के कारण ब्रह्मदत्त ने रानी के साथ मरघट में जा चिता चुनवाई और रहस्य को प्रकट करने के लिए उद्यत हो गया।
नारी में प्रासक्ति के कारण अकाल-मत्य के लिए तैयार हए ब्रह्मदत्त को समझाने के लिए उसकी कुलदेवी ने देवमाया से एक गर्भवती बकरी और बकरे का रूप बनाया।
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