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________________ चक्रवर्ती भगवान् श्री मरिष्टनेमि ४६१ दयालु मुनि ने मोक्षमार्ग के मूल सिद्धान्तों का हमें अध्ययन कराया। हमने षष्टम-अष्टम भक्त, मासक्षमण प्रादि तपस्याएं कर अपने शरीर को सुखा डाला।" "विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए हम दोनों एक दिन हस्तिनापुर पहुंचे पौर नगर के बाहर एक उद्यान में कठोर तपश्चरण करने लगे।" __ "एकदा मास-क्षमण के पारण के दिन संभूत मुनि भिक्षार्थ हस्तिनापुर नगर में गये। राजपथ पर नमूची ने संभूत मुनि को पहिचान लिया और यह सोच कर कि यह कहीं मेरे पापाचरण का भण्डाफोड़ न कर दे, मुनि को नगर से बाहर ढकेलने के लिए राजपुरुषों को आदेश दिया। नमूची का आदेश पाकर राजपुरुष घोर तपश्चरण से क्षीणकाय संभूत ऋषि पर तत्काल टूट पड़े और उन्हें निर्दयतापूर्वक पीटने लगे।' मनि शान्तभाव से उद्यान की ओर लौट पड़े। इस पर भी जब नमूची के सेवकों ने पीटना बन्द नहीं किया तो मुनि क्रुद्ध हो गये। उनके मुख से भीषण आग की लपटें उगलती हुई तेजोलेश्या प्रकट हुई। बिजली की चमक के समान चकाचौंध कर देने वाली अग्निज्वालाओं से सम्पूर्ण गगनमण्डल लाल हो गया ।२ सारे नगर में 'त्राहि-त्राहि' मच गई। झुण्ड के झुण्ड भयभीत नगरनिवासी आकर मुनि के चरणों में मस्तक झुका कर उन्हें शान्त होने की प्रार्थना करने लगे। पर मुनि का कोप शान्त नहीं हुमा। तेजोलेश्या को ज्वालाएं भीषण रूप धारण करने लगीं।" "सारे नभमण्डल को अग्निज्वालाओं से प्रदीप्त देख कर मैं भी घटनास्थल पर पहुंचा और मैंने शोघ्र ही अपने भाई को शान्त किया।" पश्चात्ताप के स्वर में संभूत ने कहा-"प्रोफ! मैंने बहुत बुरा किया और वे मेरे पीछे-पीछे चल दिये। क्षण भर में ही अग्निज्वालाएं तिरोहित हो गईं।" १ चउप्पन्न महापुरिस परियं में स्वयं पुरोहित द्वारा मुनि को पीटने का उल्लेख है। यषा.......""पुरोहियेण । 'प्रमंगलं' ति कलिऊरण दहं कसप्पहारेण ताड़ियो। [पृष्ठ २१६] २ तेजोलेश्योल्ललासाथ, ज्वालापटलमालिनी। तउिन्मण्डलसंकीर्णामिव धामभितन्वती ॥७२।। [विषष्टि शलाका पु. च., पर्व ६, सर्ग १] ३ 'अहो दुक्कयं कयं' ति भणतो उष्टिमो तप्पएसामो। [चउप्पन्न म. पुरिस च, पृ० २१६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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