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चक्रवर्ती] भगवान् श्री अरिष्टनेमि
४१५ खण्डों की विजय के लिए निकल पड़ा । सम्पूर्ण भारत खण्ड की विजय के अभियान में उसने सोलह वर्ष तक अनेक लड़ाइयां लड़ी और भीषण संघर्षों के बाद वह सम्पूर्ण भारत पर अपनी विजय-वैजयन्ती फहरा कर काम्पिल्यपुर लौटा। - वह चौदह रत्नों, नवनिधियों और चक्रवर्ती की सब समृद्धियों का स्वामी बन गया।
नवनिधियों से चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त को सब प्रकार की यथेप्सित भोग सामग्री इच्छा करते ही उपलब्ध हो जाती थी। देवेन्द्र में समान सांसारिक भोगों का उपभोग करते हुए बड़े प्रानन्द के साथ उसका समय व्यतीत हो रहा था।
एक दिन ब्रह्मदत्त अपनी रानियों, परिजनों एवं मंत्रियों से घिरा हुआ अपने रंगभवन में बैठा मधुर संगीत और मनोहारी नाटकों से मनोरंजन कर रहा था । उस समय एक दासी ने ब्रह्मदत्त की सेवा में एक बहुत ही मनोहर पूष्प-स्तवक प्रस्तुत किया, जिस पर सुगन्धित फूलों से हंस, मग, मयूर, सारस, कोकिल आदि की बड़ी सुन्दर और सजीव प्राकृतियां गफित की हई थीं। उच्चकोटि की कलाकृति के प्रतीक परम मनोहारी उस पुष्प-कन्दुक को विस्मय और कौतुक से देखते-देखते ब्रह्मदत्त के हृदय में धुधली सी स्मृति जागृत हुई कि इस तरह अलौकिक कलापूर्ण पुष्प-स्तवक पर अंकित नाटक उसने कहीं देखे हैं। ऊहापोह, एकाग्र चिन्तन, ज्ञानावरण कर्म के उपशम और स्मति पर अधिक जोर देने से उसके स्मृति-पटल पर सौधर्मकल्प में पद्मगुल्म विमान के देव का अपना पूर्व-भव स्पष्टतः अंकित हो गया। उसे उसी समय जाति-स्मरण ज्ञान हो गया और अपने पूर्व के पांच भव यथावत् दिखने लगे। ब्रह्मदत्त तत्क्षण मूच्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ा।
यह देख साम्राज्ञियों, अमात्यों और आत्मीयों पर मानों वज्रपात सा हो गया । विविध शीतलोपचारों से बड़ी देर में ब्रह्मदत्त की मूर्छा टूटी, पर अपने पूर्व भवों को याद कर वह बार-बार मूच्छित हो जाता । प्रात्मीयों द्वारा मूच्र्छा का कारण बार-बार पूछने पर भी उसने अपने पूर्व भवों की स्मृति का रहस्य प्रकट नहीं किया और यही कहता रहा कि यों ही पित्तप्रकोप से मूर्छा आ जाती है।
ब्रह्मदत्त एकान्त में निरन्तर यही सोचता रहा कि वह अपने पूर्व भवों के सहोदर से कहाँ, कब और कैसे मिल सकता है। अन्त में एक उपाय उसके मस्तिष्क में पाया । उसने अपने विशाल साम्राज्य के प्रत्येक गाँव और नगर में घोषणा करवा दी कि जो इस गाथाद्वय के चतुर्थ पद की पूर्ति कर देगा उसे वह अपना आधा राज्य दे देगा । वे गाथाएं इस प्रकार थीं :
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