SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ब्रह्मदत्त कुमार स्वेच्छानुसार हाथी को हाँकता हुमा हस्तिशाला की ओर अग्रसर हुआ । हजारों हर्षविभोर युवक जयघोष करते हुए उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। कुमार ने उस हाथी को हस्तिशाला में ले जाकर स्तम्भ से बांध दिया। गगनभेदी जयघोषों को सुनकर मगधेश्वर भी हस्तिशाला में प्रा पहुँचे । सुकुमार देव के समान सुन्दर कुमार के अलौकिक साहस को देखकर मगधेश्वर अत्यन्त विस्मित हुआ और उसने अपने मन्त्रियों और राज्य सभा के सदस्यों की ओर देखते हुए साश्चर्य जिज्ञासा के स्वर में पूछा- “सूर्य के समान तेजस्वी और शक्र के समान शक्तिशाली यह मनमोहक युवक कौन है ?" नगरश्रेष्ठी धनावह से ब्रह्मदत्त का परिचय पाकर मगधपति बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने अपनी पुत्री पुण्यमानी का ब्रह्मदत्त के साथ बड़े हर्षोल्लास, धूमधाम और ठाट-बाट से विवाह कर दिया। राजगृही नगरी कई दिनों तक महोत्सवपुरी बनी रही। राजकीय दामाद के सम्मान में मन्त्रियों, श्रेष्ठियों और गण्य-मान्य नागरिकों की ओर से भव्यभोजों का आयोजन किया गया। जिस कुमारी को वसन्तोत्सव के समय ब्रह्मदत्त ने हाथी से बचाया था, वह राजग्रह के वैश्रवण नामक धनाढ्य श्रेष्ठी की श्रीमती नाम की पुत्री थी। श्रीमती ने उसी दिन प्रण कर लिया था कि जिसने उसे हाथी से बचाया है, उसी से विवाह करेगी अन्यथा जीवनभर अविवाहित रहेगी। ब्रह्मदत्त को जब श्रीमती पर माँ से भी अधिक स्नेह रखने वाली एक वृद्धा से श्रीमती के प्रण का पता चला तो उसने विवाह की स्वीकृति दे दी। वैश्रवण श्रेष्ठी ने बड़े समारोहपूर्वक अपनी कन्या श्रीमती का ब्रह्मदत्त के साथ पाणिग्रहण करा दिया। मगधेश के मन्त्री सुबुद्धि ने भी अपनी पुत्री नन्दा का वरधनु के साथ विवाह कर दिया। थोड़े ही दिनों में ब्रह्मदत्त की यशोगाथाएं भारत के घर-घर में गाई जाने लगीं। कुछ दिन राजगृह में ठहर कर ब्रह्मदत्त और वरधनु युद्ध के लिये तैयारी करने हेतु वाराणसी पहुंचे। _वाराणसी-नरेश ने जब अपने प्रिय मित्र ब्रह्म के पुत्र ब्रह्मदत्त के प्रागमन का समाचार सुना तो वह प्रेम से पुलकित हो उसका स्वागत करने के लिये स्वयं ब्रह्मदत्त के सम्मुख आया और बड़े सम्मान के साथ उसे अपने राज-प्रासाद में ले गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy