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________________ चक्रवर्ती] भगवान् श्री अरिष्टनेमि ४५१ दोनों मित्र राजगृह में आनन्दपूर्वक रहने लगे, पर अब उन पर काम्पिल्य के राजसिंहासन से दीर्घ को हटाने की धुन सवार हो चुकी थी। __दोनों मित्र एक दिन वसन्त-महोत्सव देखने निकले । सुन्दर वसन्ती परिधान और अमूल्य आभूषण पहने खुशी में झूमती हुई राजगृह की तरुणियां और विविध सुन्दर वस्त्राभूषणों एवं चम्पा-चमेली की सुगन्धित फूलमालाओं से सजे खशी से अठखेलियां करते हुए राजग्रह के तरुण रमणीय उद्यान में मादक मधु-महोत्सव का आनन्द लूट रहे थे। उसी समय राजगृह की राजकीय हस्तिशाला से एक मदोन्मत्त हाथी लौह शृखलामों और हस्ती-स्तम्भ को तोड़कर मद में झूमता हुमा मधु-महोत्सव के उद्यान में प्रा पहुंचा। उपस्थित लोगों में भगदड़ मच गई, त्राहि-त्राहि की पुकारों और कुसुम-कली सी कमनीय सुकुमार तरुरिणयों की भय-त्रस्त चीत्कारों से नन्दन वन सा रम्य उद्यान यमराज का क्रीड़ास्थल बन गया। वह मस्त गजराज एक मधुबाला सो सुन्दर सुगौर बाला की ओर झपटा और उसने उसे अपनी सूड में पकड़ लिया। सब के कलेजे धक् होगये। ब्रह्मदत्त विद्युत् वेग से उछल कर हाथी के सम्मुख सीना तान कर खड़ा हो गया और उसके अन्तस्तल पर तीर की तरह चुभने वाले कर्कश स्वर में उसे ललकारने लगा। हाथी उस कन्या को छोड़ अपनी लम्बी सूड और पूंछ से पाकाश को विलोडित करता हुआ ब्रह्मदत्त की ओर झपटा। हस्ति-युद्ध का मर्मज्ञ कुमार हाथी को इधर-उधर नचाता-कुदाता उसे भुलावे में डालता रहा और फिर बड़ी तेजी से कूदकर हाथी के दांतों पर पैर रखते हुए उसकी पीठ पर जा बैठा। हाथी थोड़ी देर तक चिंघाड़ता हुआ इधर से उधर अन्धाधुन्ध भागता रहा, पर अन्त में कुमार ने हाथी को वश में करने वाले गूढ़ सांकेतिक अद्भुत शब्दों के उच्चारण से उसे वश में कर लिया। वसंतोत्सव में सम्मिलित हुए सभी नर-नारी, जो अब तक श्वास रोके चित्रलिखित से खड़े महामृत्यु का खेल देख रहे थे, हाथी को वश में हुअा जानकर जयघोष करने लगे। तरुणों और तरुरिणयों ने अपने गलों में से फलमालाएं उतार-उतार कर कुमार पर पुष्पवर्षा प्रारम्भ कर दी। उस समय कुमार वसन्ती फूल और फूलमालाओं से लदा इतना मनोहर प्रतीत हो रहा था मानो मधु-महोत्सव की मादकता पर मुग्ध हो मस्ती से झूमता हुआ स्वयं मधुराज ही उस मदोन्मत्त हाथी पर प्रा बैठा हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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