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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ ब्रह्मदत्त
वरधनु ने कहा - " कुमार ! मैं आपके लिए पानी ला रहा था, उस समय मुझे दीर्घ के सैनिकों ने निर्दयता से पीटना प्रारम्भ कर दिया और आपके बारे में पूछने लगे। मैंने रोते हुए कहा कि कुमार को तो सिंह खा गया है । इस पर उन्होंने जब उस स्थान को बताने को कहा तो मैंने उन्हें इधर से उधर भटकाते हुए आपको भाग जाने का संकेत किया । आपके भाग जाने पर मैं आश्वस्त हुआ और मैंने मौन ही साध ली। उन दुष्टों ने मुझे बड़ी निर्दयता से मारा और मैं अधमरा हो गया । मैं असह्य यातना से तिलमिला उठा और मौका पा मैंने उन लोगों की नजर बचा मूच्छित होने की गोली अपने मुंह में रख ली । उस गोली के प्रभाव से मैं निश्चेष्ट हो गया और वे मुझे मरा हुआ समझ हताश हो लौट गये । उनके जाते ही मैंने अपने मुख में से उस गोली को निकाल लिया और आपको इधर-उधर ढूंढ़ने लगा, पर आपका कहीं पता नहीं चला । पिताजी के एक मित्र से पिताजी के भाग निकलने और माता को दीर्घ द्वारा दु:ख दिये जाने का वृत्तान्त सुन कर मैंने माता को काम्पिल्यपुर से किसी न किसी तरह ले
ने का दृढ़ संकल्प किया । बड़े नाटकीय ढंग से मैं माता को वहां से ले आया और उसे पिताजी के एक अन्तरंग मित्र के पास छोड़ कर आपको इधर-उधर ढूंढ़ने लगा । अन्त में मैंने आज महान् सुकृत के फल की तरह आपको पा ही लिया ।"
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ब्रह्मदत्त ने भी दीर्घकालीन दुःख के पश्चात् थोड़ी सुख घोर दुःख भरे अपने सुख-दुःख के घटनाचक्र का वृत्तान्त वरधनु को
की झलक,
सुनाया 1
ब्रह्मदत्त अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाया था कि उन्हें दीर्घराज के सैनिकों के बड़े दल के आने की सूचना मिली। वे दोनों अन्धेरे गिरि-गह्वरों की ओर दौड़ पड़े । अनेक विकट वनों और पहाड़ों में भटकते २ वे दोनों कौशाम्बी नगरी पहुँचे ।
फिर
कोशाम्बी के उद्यान में उन्होंने देखा कि उस नगर के सागरदत्त और बुद्धिल नामक दो बड़े श्रेष्ठी एक-एक लाख रुपये दाँव पर लगा अपने कुक्कुटों को लड़ा रहे हैं । दोनों श्रेष्ठियों के कुक्कुटों की बड़ी देर तक मनोरंजक झड़पें होती रहीं पर अन्त में अच्छी जाति का होते हुए भी सागरदत्त का मुर्गा बुद्धिल के मुर्गे से हार कर मैदान छोड़ भागा !
सागरदत्त एक लाख का दाँव हार चुका था । ब्रह्मदत्त को सागरदत्त के अच्छी नस्ल के कुक्कुट की हार से आश्चर्य हुआ । उसने बुद्धिल के कुक्कुट को पकड़ कर अच्छी तरह देखा और उसके पंजों में लगी सूई की तरह तीक्ष्ण लोहे की पतली कीलों को निकाल फेंका ।
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दोनों कुक्कुट पुनः मैदान में उतारे गये, पर इस बार सागरदत्त के कुक्कुट ने बुद्धिल के कुक्कुट को कुछ ही क्षणों में पछाड़ डाला ।
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