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________________ ४३१ वै० सा० में परि० और उनका वंश-वर्णन] भगवान् श्री अरिष्टनेमि वैदिक साहित्य में परिष्टनेमि और उनका वंश-वर्णन संसार के प्रायः सभी प्राचीन और अर्वाचीन इतिहासज्ञों का अभिमत है कि श्रीकृष्ण एक ऐतिहासिक महापुरुष हो गये हैं । ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण के ताऊ के सुपुत्र भगवान् अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार करने में कोई दो राय नहीं हो सकती और न इस सम्बन्ध में किसी प्रकार के विवाद की ही गुजायश रहती है। फिर भी आज तक यह प्रश्न इतिहासज्ञों के समक्ष अनबूझी पहेली को तरह उपस्थित रहा है कि वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में, जहां कि यादववंश का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है, अरिष्टनेमि का कहीं उल्लेख है अथवा नहीं। इस प्रहेलिका को हल करने के लिये इतिहास के विद्वानों ने समय-समय पर कई प्रयास किये. पर उनकी शोध के केन्द्रबिन्दु संभवतः श्रीमद्भागवत और महाभारत ही रहे, अतः इस पहेली के समाधान में उन्हें पर्याप्त सफलता नहीं मिल सकी । फलतः अन्यत्र सूक्ष्म अन्वेषण एवं गहन गवेषणा के अभाव में इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य की वास्तविक स्थिति के ज्ञान से संसार को वंचित ही रहना पड़ा। ___ इस तथ्य के सम्बन्ध में यह धूमिल एवं अस्पष्ट स्थिति हमें बहुत दिनों से राती रही है । हमने वैदिक परम्परा के अनेक ग्रन्थों में इस पहेली के हल को ढूढ़ने का अनवरत प्रयास किया और अन्ततोगत्वा वेदव्यास प्रणीत 'हरिवंश' को गहराई से देखा तो यह उलझी हुई गुत्थी स्वतः सुलझ गई और भारतीय इतिहास का एक धूमिल तथ्य स्पष्टतः प्रकट हो गया। हरिवंश में महाभारतकार वेदव्यास ने श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि का चचेरे भाई होना स्वीकार किया है । इस विषय से सम्बन्धित 'हरिवंश' के मूल श्लोक इस प्रकार हैं : बभूवुस्तु यदोः पुत्राः, पंच देवसुतोपमाः । सहस्रदः पयोदश्च, क्रोष्टा नीलांऽजिकस्तथा ।।१।। [हरिवंश पर्व १, अध्याय ३३] अर्थात् महाराज यदु के सहस्रद, पयोद, कोष्टा, नील और अंजिक नाम के देवकुमारों के तुल्य पाँच पुत्र हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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