________________
- ४३२
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[वैदिक माहित्य में
गान्धारी चैव माद्री च, क्रोष्टोभर्य बभूवतुः । गान्धारी जनयामास, अनमित्रं महाबलम् ॥१॥ माद्री युधाजितं पुत्रं, ततोऽन्यं देवमीढुपम् ।। तेषां वंशस्त्रिधाभूतो, वृष्णीनां कुलवर्द्धनः ।।२।।
[हरिवंश, पर्व १, अध्याय ३४] अर्थात् कोष्टा की माद्री नाम की दूसरी रानी से युधाजित् और देवमीढुष नामक दो पुत्र हुए।
माद्रयाः पुत्रस्य जज्ञाते, सूतौ वष्ण्यन्धकावभौ । जज्ञाते तनयो वृष्णेः, स्वफल्कश्चित्रकस्तथा ।।३।।
_[वही]
कोष्टा के बड़े पुत्र युधाजित् के वृष्णि और अन्धक नामक दो पुत्र हुए। वृष्णि के दो पुत्र हुए, एक का नाम स्वफल्क और दूसरे का नाम चित्रक था ।
अक्रूरः सुषुवे तस्माच्छ्वफल्काद् भूरिदक्षिणः ।।११।। अर्थात् स्वफल्क के अक्रूर नामक महादानी पुत्र हुए। चित्रकस्याभवन् पुत्राः, पृथुविपृथुरेव च । अश्वग्रीवोऽश्वबाहुश्च, सुपार्श्वकगवेषणौ ।।१५।। अरिष्टनेमिरश्वश्च, सुधर्माधर्मभृत्तथा । सुबाहुबहुबाहुश्च, श्रविष्ठाश्रवणे स्त्रियौ ।।१६।।
. [हरिवंश, पर्व १, अध्याय ३४] चित्रक के पृथु,' विपृथु, अश्वग्रीव, अश्वबाहु, सुपार्श्वक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुधर्मा, धर्मभृत्, सुबाहु और बहुबाहु नामक बारह पुत्र तथा श्रविष्ठा व श्रवणा नाम की दो पुत्रियाँ हुईं।।
१ श्रीमद्भागवत में वृष्णि के दो पुत्रों का नाम स्वफल्क और चित्ररथ (चित्रक) दिया है । चित्ररथ (चित्रक) के पुत्रों का नाम देते हुए 'पृथुर्विपृथु धन्याद्याः' दूसरे पाठ में 'पृथुर्विदूरथाद्याश्च' इतना ही उल्लेख कर केवल तीन और दो पुत्रों के नाम देने के पश्चात् प्रादि-प्रादि लिख दिया है।
[श्रीमद्भागवत, नवम स्कन्ध, अ० २४, श्लोक १८]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org