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जैन धर्म का मौलिक इतिहास ऐतिहासिक परिपावं प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डॉ० राय चौधरी ने अपने "वैष्णव धर्म के प्राचीन इतिहास" में अरिष्टनेमि को कृष्ण का चचेरा भाई लिखा है, किन्तु उन्होंने इससे अधिक जैन ग्रन्थों में वर्णित अरिष्टनेमि के जीवन वृत्तान्त का कोई उल्लेख नहीं किया । इसका कारण यह हो सकता है कि अपने ग्रन्थ में डॉ० राय चौधरी ने कृष्ण के ऐतिहासिक व्यक्ति होने के सम्बन्ध में उपलब्ध प्रमाणों का संकलन किया है । अतः उनकी दृष्टि उसी ओर सीमित रही है।'
प्रभास पुराण में भी अरिष्टनेमि और कृष्ण से सम्बन्धित इस प्रकार का उल्लेख है। यजुर्वेद में स्पष्ट उल्लेख है-"अध्यात्मवेद को प्रकट करने वाले संसार के सब जीवों को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है, उन सर्वज्ञ अरिष्टनेमि के लिए आहुति समर्पित है।"
इनके अतिरिक्त अथर्ववेद के मांडक्य प्रश्न और मुडक में भी अरिष्टनेमि का नाम आया है।
महाभारत में विष्णु के सहस्र नामों का उल्लेख है। उनमें "शूरः शौरिर्जनेश्वरः” पद व्यवहृत हुआ है।
इन श्लोकों का अन्तिम चरण ध्यान देने योग्य है । उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जयपुर में टोडरमल नामक एक जैन विद्वान् हुए हैं। उन्होंने “मोक्ष मार्ग प्रकाश" नामक अपने ग्रन्थ में 'जनेश्वर' के स्थान पर 'जिनेश्वर' लिखा है। दूसरी बात यह है कि इसमें श्रीकृष्ण को 'शौरिः' लिखा है । प्रागरा जिले में वटेश्वर के पास शोरिपुर नामक स्थान है । जैन ग्रन्थों के अनुसार प्रारम्भ में यहीं पर यादवों की राजधानी थी। यहीं से यादवगण भाग कर द्वारिकापुरी पहुँचे थे। यहीं पर भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था, अतः उन्हें 'शौरि' भी कहा है, और वे जिनेश्वर तो थे ही।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भगवान अरिष्टनेमि निस्संदेह एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। अब तो आजकल के विद्वान् भी उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने लगे हैं।
१ जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका, पृ. १७० से । २ प्रशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ।।५०॥ .. कालनेमिनिहा वीरः शूरः शौरिजनेश्वरः ।।८२॥ ३ वाजस्यनु प्रसव बभूवे मा च विश्वा भुवनानि सर्वतः, स नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजां पुष्टिं वर्द्धमानो प्रस्मै स्वाहा ।। [वाजसनेयि माध्यंदिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता प्र० ६ मंत्र २५ । यजुर्वेद सातवलेकर संस्करण (वि० सं० १९८४)]
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