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________________ परिपार्श्व ] भगवान् श्री श्ररिष्टनेमि 1 पुरुष थे । प्रसिद्ध कोशकार डॉ० नरेन्द्रनाथ बसु, पुरातत्वज्ञ डॉ० फूहर्र प्रोफेसर वारनेट, कर्नल टॉड, मिस्टर करवा, डॉ० हरिसन, डॉ० प्रारणनाथ विद्यालंकार डॉ० राधाकृष्णन् आदि अनेक विज्ञों ने धारणा व्यक्त की है कि अरिष्टनेमि एक ऐतिहासिक पुरुष रहे हैं । महाभारत में । उन तार्क्ष्य उसकी तुलना ऋग्वेद में अरिष्टनेमि शब्द बार-बार प्रयुक्त हुआ है ।" तार्क्ष्य शब्द अरिष्टनेमि के पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त हुआ है अरिष्टनेमि ने राजा सगर को जो मोक्ष सम्बन्धी उपदेश दिया है जैन धर्म के मोक्ष सम्बन्धी मन्तव्यों से की जा सकती है । तार्क्ष्य अरिष्टनेमि ने सगर से कहा – “सगर ! संसार में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है किन्तु धन, धान्य, पुत्र, कलत्र एवं पशु आदि में आसक्त मूढ़ मनुष्य को इसका यथार्थ ज्ञान नहीं होता । जिसकी बुद्धि विषयों में अनुरक्त एवं मन अशान्त है, ऐसे जनों की चिकित्सा अत्यन्त कठिन है । स्नेह-बन्धन में बँधा हुआ मूढ़ मोक्ष पाने के योग्य नहीं है ।" ४२६ ऐतिहासिक दृष्टि से स्पष्ट है कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे, एतदर्थ यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता । ऋग्वेद में भी तार्क्ष्य अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है । इसके लिए विशेष पुष्ट प्रमाण की आवश्यकता है । "लंकावतार" के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नामों में अरिष्टनेमि का नाम भी आया है । वहाँ लिखा है कि एक ही वस्तु के अनेक नाम होने की तरह बुद्ध के भी असंख्य नाम हैं। लोग इन्हें तथा गत, स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, ईश्वर, विष्णु, प्रधान, कपिल, भूतान्त, भास्कर, अरिष्टनेमि आदि नामों से पुकारते हैं । यह उल्लेख इससे पूर्व अरिष्टनेमि का होना प्रमाणित करता है । 'ऋषि - भासित सुत्त' में अरिष्टनेमि और कृष्ण-निरूपित पैंतालीस अध्ययन हैं, उनमें बीस अध्ययनों के प्रत्येक बुद्ध अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में हुए थे । उनके द्वारा निरूपित अध्ययन अरिष्टनेमि के अस्तित्व के स्वयंसिद्ध प्रमारग हैं । ऋग्वेद के अतिरिक्त वैदिक साहित्य के अन्यान्य ग्रन्थों में भी अरिष्टनेमि का उल्लेख हुआ है । इतना ही नहीं, तीर्थंकर अरिष्टनेमि का प्रभाव भारत के बाहर विदेशों में पहुँचा प्रतीत होता है। कर्नल टॉड के शब्द हैं- "मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं । उनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे । नेमिनाथ ही स्केन्डोनेविया निवासियों के प्रथम "प्रोडिन" और चीनियों के प्रथम " फो" देवता थे ।" धर्मानन्द कौशाम्बी ने घोर आंगिरस को नेमिनाथ माना है । १ ऋग्वेद : १।१४ । ८६| ६| १|२४| १८०|१०|३ | ४ । ५३ । १७।१०।१२।१७८ |१| मथुरा १९६० २ महाभारत का शान्ति पर्व २८८ | ४ || २८८|५|६| ३ सगर चक्रवर्ती से भिन्न, यह कोई अन्य राजा सगर होना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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