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केवली
मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी
वादी
साधु साध्वी
श्रावक
श्राविका अनुत्तरगति वाले
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
११ ही गरण १
एक हजार पाँच सौ (१,५०० ) एक हजार (१,००० )
एक हजार पाँच सौ (१,५०० ) चार सौ (४००) आठ सौ ( ८५०० )
अठारह हजार (१८,००० ) चालीस हजार (४०,००० )
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[ ऐतिहासिक
एक लाख उनहत्तर हजार ( १,६६,००० ) तीन लाख छत्तीस हजार ( ३, ३६०,०० ) एक हजार छः सौ (१,६०० )
एक हजार पाँच सौ ( १५०० ) श्रमण और तीन हजार ( ३००० ) श्रमणियां, इस प्रकार प्रभु के कुल चार हजार पाँच सौ अन्तेवासी सिद्ध-बुद्धमुक्त हुए ।
परिनिर्वाण
कुछ कम सात सौ वर्ष की केवलीचर्या के पश्चात् प्रभु ने जब प्रयुकाल निकट समझा तो उज्जयंतगिरि पर पाँच सौ छत्तीस साधुओं के साथ एक मास का अनशन ग्रहण कर आषाढ शुक्ला अष्टमी को चित्रा नक्षत्र के योग में मध्यरात्रि के समय आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय इन चार प्रघाति कर्मों का क्षय कर निषद्या प्रसन से वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए । अरिहन्त प्ररिष्टनेमि तीन सौ वर्ष कुमार अवस्था में रहे, चौवन दिनों तक छद्मस्थ रूप से साधनारत रहे और कुछ कम सात सौ वर्ष केवली रूप में विचरे । इस तरह प्रभु को कुल आयु एक हजार वर्ष की थी ।
ऐतिहासिक परिपार्श्व
आधुनिक इतिहासज्ञ भगवान् महावीर और भगवान् पार्श्वनाथ को ही अब तक ऐतिहासिक पुरुष मान रहे थे, परन्तु कुछ वर्षों के तटस्थ एवं निष्पक्ष अनुसंधान से यह प्रमाणित हो गया है कि अरिहन्त अरिष्टनेमि भी ऐतिहासिक
१ (क) अरिष्टनेमेरेकादश नेमिनाथस्याष्टादशेति केचिन्मन्यन्ते ।
[ प्रवचन सारोद्धार, पूर्व भाग, द्वार १५, पृष्ठ ८६ (२)] (ख) अरह गं रिट्टनेमिस्स अट्ठारस गरणा, अट्ठारस गरगहरा हुत्था ।। १७५ ।। [ कल्प ०
स० ]
२ प्राव० निर्युक्ति, गाथा ३३०, पृ. २१४ प्रथम ।
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