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________________ ४२७ वैराग्य और मुक्ति भगवान् श्री अरिष्टनेमि महारानी द्रौपदी भी आर्या सुव्रता के पास दीक्षित हो गई। दीक्षित होने के पश्चात् पाँचों पाण्डवों और सती द्रौपदी ने क्रमशः चौदह पूर्व और एकादश अंगों का अध्ययन करने के साथ-साथ बड़ी घोर तपस्याएँ की । कठोर संयम और तप की तीव्र अग्नि में अपने कर्मसमूह को भस्मसात करते हुए जिस समय युधिष्ठिर, भीम आदि पाँचों पाण्डव-मुनि ग्रामानुग्राम विचरण कर रहे थे, उस समय उन्होंने सुना कि अरिहंत अरिष्टनेमि सौराष्ट्र प्रदेश में अनेक भव्य जीवों का उद्धार करते हए विचर रहे हैं, तो पांचों मनियों के मन में भगवान् के दर्शन एवं वन्दन की तीव्र उत्कण्ठा हुई। उन्होंने अपने गुरु से प्राज्ञा प्राप्त कर सौराष्ट्र की ओर विहार किया। पांचों मुनि मास, अर्द्ध मास की तपस्या करते हुए सौराष्ट्र की ओर बढ़ते हुए एक दिन उज्जयन्तगिरि से १२ योजन दूर हस्तकल्प' नगर के बाहर सहस्राम्रवन में ठहरे । युधिष्ठिर मनि को उसी स्थान पर छोड़ कर भीम, अर्जन, नकूल और सहदेव मास-तप के पारण हेतु नगर में भिक्षार्थ गये। भिक्षार्थ घमते समय उन्होंने सुना कि भगवान् नेमिनाथ उज्जयन्तगिरि पर एक मास की तपस्यापूर्वक ५३६ साधुओं के साथ चार अघाती कर्मों का क्षय कर निर्धारण प्राप्त कर चुके हैं। चारों मुनि यह सुन कर बड़े खिन्न हुए और तत्काल ही सहस्राम्रवन में लौट प्राये। यधिष्ठिर के परामर्शानसार पूर्वग्रहीत आहार का परिष्ठापन कर पाँचों मुनि शत्रुजय पर्वत पहुंचे और वहां उन्होंने संलेखना की। ___ अनेक वर्षों की संयम-साधना कर युधिष्ठिर, भीम, अर्जन, नकूल और सहदेव ने २ मास की संलेखना से आराधना कर कैवल्य की उपलब्धि के पश्चात अजरामर निर्वाण-पद प्राप्त किया। आर्या द्रौपदी भी अनेक वर्षों तक कठोर संयम-तप की साधना और एक मास की संलेखना में काल कर पंचम कल्प में महद्धिक देव रूप से उत्पन्न हुई ।२ धर्म-परिवार भगवान् अरिष्टनेमि के संघ में निम्न धर्म-परिवार था : गणधर एवं गण - ग्यारह (११) वरदत्त आदि गणधर एवं १ अस्मात् द्वादशयोजनानि स गिरिनमि प्रगे वीक्ष्य तत् .. ...। [त्रिषष्टि श. पु. च., ८।१२, श्लो० १२६] २ ज्ञाता धर्म कथांग १।१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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