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थावच्चापुत्र]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि
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एक हजार पुरुषों के साथ सब आभूषणों को उतार स्वयमेव पंचमुष्टि लुचन कर प्रभु नेमिनाथ के पास मुनि-दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षित होकर थावच्चापुत्र ने भगवान् अरिष्टनेमि के स्थविरों के पास चौदह पूर्वी एवं एकादश अंगों का अध्ययन किया और चतुर्थ भक्तादि तपस्या से अपने कर्म-मल को साफ करने लगे।
अहंत अरिष्टनेमि ने थावच्चाकूमार की आत्मनिष्ठा. तपोनिष्ठा, तीक्षण बुद्धि और हर तरह योग्यता देखकर उनके साथ दीक्षित हुए एक हजार मुनियों को उनके शिष्य रूप में प्रदान किया और उन्हें भारत के विभिन्न जनपदों में विहार कर जन-कल्याण करने की आज्ञा दी। अणगार थावच्चापुत्र ने प्रभुप्राज्ञा को शिरोधार्य कर भारत के सुदूर प्रान्तों में मप्रतिहत विहार एवं धर्म का प्रचार करते हुए अनेक भव्यों का उद्धार किया।
अनेक जनपदों में विहार करते हुए थावच्चापुत्र अपने एक हजार शिष्यों के साथ एक समय शैलकपुर पधारे। वहाँ आपके तात्त्विक एवं विरक्तिपूर्ण उपदेश को सुनकर 'शैलक' जनपद के नरपति 'शैलक राजा' ने अपने पंथक प्रादि पाँच सौ मन्त्रियों के साथ श्रावक-धर्म स्वीकार किया।
___ इस प्रकार धर्मपथ से भूले-भटके अनेक लोगों को सत्पथ पर अग्रसर करते हुए थावच्चापुत्र सौगन्धिका नगरी पधारे ।
सौगन्धिका नगरी में अरणगार थावच्चापुत्र के पधारने से कुछ दिनों पहले वेद-वेदांग और सांख्यदर्शन के पारगामी गैरुक वस्त्रधारी शुक नामक प्रकाण्ड विद्वान परिव्राजकाचार्य आये थे। शुक के उपदेश से सौगन्धिका नगरी का सुदर्शन नामक प्रतिष्ठित श्रेष्ठी बड़ा प्रभावित हुआ और शुक द्वारा प्रतिपादित शौचधर्म को स्वीकार कर वह शुक का उपासक बन गया था।
अरणगार थावच्चापुत्र के सौगन्धिका नगरी में पधारने की सूचना मिलते ही सुदर्शन सेठ और सौगन्धिका नगरी के निवासी उनका धर्मोपदेश सुनने गये। उपदेश-श्रवण के पश्चात् सुदर्शन ने थावच्चापुत्र से धर्म एवं प्राध्यात्मिक ज्ञान सम्बन्धी अनेक प्रश्न किये । थावच्चापुत्र के यूक्तिपूर्ण और सारगर्भित उत्तर से सुदर्शन के सब संशय दूर हो गये और उसने थावच्चापुत्र से श्रावक-धर्म अंगीकार किया ।
किसी अन्य स्थान पर विचरण करते हुए शुक परिव्राजक को जब सुदर्शन के श्रमणोपासक बनने की सूचना मिली तो वे सौगन्धिका नगरी पाये और सुदर्शन के घर पहुँचे ।
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