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४२० जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[महामुनि गाथा-पत्नी ने बड़े लाड़-प्यार से अपने पुत्र थावच्चापुत्र का लालन-पालन किया और आठ वर्ष की आयु में उन्हें एक योग्य प्राचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए रखा। कुशाग्रेबुद्धि थावच्चापुत्र ने विनयपूर्वक अपने कलाचार्य के पास विद्याध्ययन किया और सर्वकलानिष्णात हो गये।
गाथा-पत्नी ने अपने इकलौते पुत्र का, युवावस्था में पदार्पण करते ही बड़ी धूमधाम से, बत्तीस इभ्यकूल की सर्वगुणसम्पन्न सुन्दर कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कराया। थावच्चापुत्र पहले ही विपुल सम्पत्ति के स्वामी थे फिर कन्यादान के साथ प्राप्त सम्पदा के कारण उनकी समृद्धि और अधिक प्रवृद्ध हो गई । वे बड़े आनन्द के साथ गार्हस्थ्य जीवन के भोगों का उपभोग करने लगे।
एक बार भगवान अरिष्टनेमि अठारह हजार श्रमण और चालीस हजार श्रमणियों के धर्मपरिवार सहित विविध ग्राम-नगरों को अपने पावन चरणों से पवित्र करते हुए रैवतक पर्वत के नन्दन-वन उद्यान में पधारे।
प्रभु के शुभागमन के सुसंवाद को पाकर श्रीकृष्ण वासुदेव ने अपनी सुधर्म-सभा की कौमुदी घंटी बजवाई और द्वारिकावासियों को प्रभुदर्शन के लिए शीघ्र ही समद्यत होने की सूचना दी। तत्काल दशों दशाह, समस्त यादव परिवार और द्वारिका के नागरिक स्थानानन्तर सुन्दर वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो भगवान् के समवसरण में जाने के लिए कृष्ण के पास पाये।
श्रीकृष्ण भी अपने विजय नामक गन्धहस्ती पर आरूढ़ हो दशों दशाहों, परिजनों, पुरजनों, चतुरंगिणी सेना और वासुदेव की सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ द्वारिका के राजमार्गों पर अग्रसर होते हुए भगवान् के समवसरण में पहुँचे । थावच्चाकुमार भी इस विशाल जनसमुदाय के साथ समवसरण में पहुँचा ।
अत्यन्त प्रियदर्शी, नयनाभिराम एवं मनोहारी भगवान के दर्शन करते ही सबके नयन-कमल और हृदय-कुमुद विकसित हो गये । सबने बड़ी श्रद्धा और भक्तिपूर्वक भगवान् को वन्दन किया और यथोचित स्थान ग्रहण किया। ___भगवान् की अघदलहारिणी देशना सुनने के पश्चात् श्रोतागण अपने-अपने आध्यात्मिक उत्थान के विविध संकल्पों को लिए अपने-अपने घर की ओर लौट गये।
थावच्चापुत्र भी भगवान् को वन्दन कर अपनी माता के पास पहुंचा और माता को प्रणाम कर कहने लगा--'अम्बे ! मुझे भगवान अरिष्टनेमि के अमोघ प्रवचन सुन कर बड़ी प्रसन्नता हुई है। मेरी इच्छा संसार के विषय-भोगों से विरत हो गई है । मैं जन्म-मरण के बन्धनों से सदा-सर्वदा के लिए छुटकारा पाने हेतु प्रभु के चरण-शरण में प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूँ।"
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