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________________ कठोर संयम-साधना भगवान् श्री अरिष्टनेमि ४१५ कृष्ण के समझाने पर जराकुमार ने पाण्डव-मथुरा की ओर प्रस्थान कर दिया । प्यास के साथ बाण की तीव्र वेदना से व्यथित श्रीकृष्ण बलदेव के आने से पूर्व ही एक हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर जीवनलीला समाप्त कर गये। . थोड़ी ही देर में शीतल जल लेकर ज्योंही बलदेव पहुंचे और दूर से ही कृष्ण को लेटे देखा तो उन्हें निद्राधीन समझ कर उनके जगने की प्रतीक्षा करते रहे। बड़ी इन्तजार के बाद भी जब कृष्ण को जगते नहीं देखा तो बलदेव ने पास आकर कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहा-"भाई ! जगो बहुत देर हो गई।" पर कृष्ण की ओर से कोई उत्तर न पा उन्होंने पीताम्बर हटाया। कृष्ण के पादतल में घाव देखते ही वे क्रुद्ध सिंह की तरह दहाड़ने लगे-"अरे कौन है वह दुष्ट, जिसने सोते हुए मेरे प्राणप्रिय भाई पर प्रहार किया है ? वह नराधम मेरे सम्मुख आये, मैं अभी उसे यमधाम पहुँचाये देता हूँ।" बलदेव बडी देर तक जंगल में इधर-उधर घातक को खोजने लगे। पर कृष्ण पर प्रहार करने वाले का कहीं पता न चलने पर वे पुनः कृष्ण के पास लौटे और शोकाकुल हो करुण विलाप करते हुए बार-बार कृष्ण को जगाने लगे और भीषण. वन की काली अन्धेरी रात में कृष्ण के पास बैठे-बैठे करुण विलाप करते रहे। अन्त में सूर्योदय होने पर बलराम ने कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहा-"भाई ! उठो, महापुरुष होकर भी आज तुम साधारण पुरुष की तरह इतने अधिक कैसे सोये हो? उठो, सूर्योदय हो गया, प्रब यहाँ सोने से क्या होगा? चलो मागे चलें।" ___ यह कह कर बलराम ने अपने भाई के प्रति प्रबल अनुराग और मोह के कारण निर्जीव कृष्ण के तन को भी सजीव समझकर अपने कन्धे पर उठाया और ऊबड़-खाबड़ दुर्गम भूमि पर यत्र-तत्र स्खलित होते हुए भी आगे की ओर चल पड़े। इस तरह वे बिना विश्राम किये कृष्ण के पार्थिव शरीर को कन्धे पर उठाये, करुण-क्रन्दन करते हुए बीहड़ वनों में निरन्तर इधर-उधर घूमते रहे । बलराम को इस स्थिति में देखकर उनके सारथि सिद्धार्थ का जीव जो भगवान् नेमिनाथ के चरणों में दीक्षित हो संयमसाधना कर आयु पूर्ण होने पर देव हो गया था, बड़ा चिन्तित हुमा । उसने सोचा-"महो! कर्म की परिणति कैसी दुनिवार है। त्रिखण्डाधिपति कृष्ण और बलराम की यह अवस्था ? मेरा कर्तव्य है कि में बलदेव को जाकर समझाऊँ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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