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________________ द्वारिकादाह ] भगवान् श्री अरिष्टनेमि ४१३ सुगौर, सुन्दर और पुष्ट अगणित मानव शरीर कपूर की पुतलियों की तरह जलने लगे । भागने का प्रयास करने पर भी कोई द्वारिकावासी भाग नहीं सका । अग्निकुमार द्वारा जो जहाँ था, वहीं स्तंभित कर दिया गया । 1 श्रीकृष्ण और बलराम ने वसुदेव, देवकी और रोहिरणी को एक रथ में बिठाकर रथ चलाना चाहा, पर हजार प्रयत्न करने पर भी घोड़ों ने एक डग तक आगे नहीं बढ़ाया । हताश हो कृष्ण और बलदेव ने रथ को स्वयं खींचना प्रारम्भ किया, पर एक विशाल द्वार से कृष्ण और बलराम के निकलते ही वह द्वार भयंकर शब्द करता हुआ रथ पर गिर पड़ा । द्वैपायन देव ने कहा - " कृष्ण-बलराम ! मैंने पहले ही कह दिया था कि आप दोनों भाइयों को छोड़कर और कोई बचा नहीं रह सकेगा ।" वसुदेव, देवकी और रोहिणी ने कहा - "पुत्रो ! हमें बचाने का तुम पूरा प्रयास कर चुके हो, कर्मगति बलीयसी है, हम अब प्रभु शरण लेते हैं । तुम दोनों भाई कुशलपूर्वक जाओ ।" कृष्ण और बलराम बड़ी देर तक वहां खड़े रहे । सब प्रोर से स्त्रियों की चीत्कारें, बच्चों एवं वृद्धों के करुण क्रन्दन और जलते हुए नागरिकों की पुकारें उनके कानों के द्वार से हृदय में गूंज रही थी - " कृष्ण ! हमारी रक्षा करो, हलधर ! हमें बचाओ ।" पर दोनों भाई हाथ मलते ही खड़े रह गये, कुछ भी न कर सके । संभवतः इन नरशार्दूलों ने अपने जीवन में पहली ही बार विवशता का यह दुःखद अनुभव किया था । सारी द्वारिका जल गई और भू-स्वर्ग द्वारिका के स्थान पर धधकती आग का दरिया हिलोरें ले रहा था । अन्ततोगत्वा असह्य अन्तर्व्यथा से संतप्त हो कृष्ण और बलदेव वहाँ से चल दिये । शोकातुर कृष्ण ने बलराम से पूछा - "भैया ! अब हमें किस ओर जाना है ? प्रायः सभी नृपवर्ग अपने मन में हमारे प्रति शत्रुतापूर्ण भावना रखते हैं ।" बलराम ने कहा- दक्षिण दिशा में पाण्डव-मथुरा की ओर । श्रीकृष्ण ने कहा - "बलदाउ भैया ! मैंने पाण्डवों को निर्वासित कर उनका अपकार किया है ।" बलराम बोले—“उन पर तुम्हारे उपकार असीम हैं ? इसके अतिरिक्त पाण्डव बड़े सज्जन और हमारे सम्बन्धी हैं । इस विपन्नावस्था में हमें वे बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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