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जैन धर्म का मौलिक इतिहास कृष्ण की चिन्ता और तुम दोनों भाइयों को छोड़ कर सब यादवों और नागरिकों को द्वारिका के साथ ही जलाकर खाक कर दूंगा। तुम दोनों के सिवा द्वारिका का कोई कुत्ता तक भी नहीं बच पायेगा।"१
श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा के उपाय
हताश हो बलराम और कृष्ण द्वारिका लौट आये और द्वैपायन द्वारा द्वारिकावासियों सहित द्वारिकादाह का निदान करने की बात द्वारिका के घर-घर में फैल गई। श्रीकृष्ण ने दूसरे दिन द्वारिका में घोषणा करवा दी.--"अाज से सब द्वारिकावासी अपना अधिकाधिक समय व्रत, उपवास, स्वाध्याय, ध्यान आदि धार्मिक कृत्यों को करते हुए बितायें ।
श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार सब द्वारिकावासी धार्मिक कार्यों में जुट गये ।
उन्हीं दिनों भगवान् अरिष्टनेमि रैवतक पर्वत पर पधारे । श्रीकृष्ण और बलराम के पीछे-पीछे द्वारिका के प्रमुख नागरिक भगवान् के अमृतमय उपदेश को सनने के लिए रैवतक पर्वत की ओर उमड़ पड़े। मोहान्धकार को मिटाने वाले भगवान् के प्रवचनों को सुनकर शाम्ब, प्रद्युम्न, सारण, उन्मक निसढ़ आदि अनेक यादव-कुमारों और रुक्मिणी जाम्बवती आदि अनेक स्त्रीरत्नों ने विरक्त हो प्रभु के चरणों में श्रमण-दीक्षा स्वीकार की।
श्रीकृष्ण द्वारा किये गये एक प्रश्न के उत्तर में भगवान् अरिष्टनेमि ने फरमाया-"प्राज से बारहवें वर्ष में कैपायन द्वारिका को भस्मसात् कर देगा।"
श्रीकृष्ण को चिन्ता और प्रभु द्वारा प्राश्वासन भगवान अरिष्टनेमि के मखारविन्द से अपने प्रश्न का उत्तर सनते ही श्रीकष्ण की आँखों के सामने द्वारिकादाह का भावी वीभत्स-दारुण-दुखान्त दृश्य साकार हो मँडराने लगा। वे सोचने लगे- "धनपति कुबेर की देखरेख में विश्वकर्मा द्वारा स्वर्ण-रजत एवं मरिण-माणिक्य, हीरों, पन्नों आदि अमूल्य रत्नों से निर्मित इस धरा का साकार स्वर्ग-सा यह नगर आज से बारहवें वर्ष में सुरों और सुररमरिगयों से स्पर्धा करने वाले समस्त नागरिकों सहित जलाकर भस्मसात् कर दिया जायगा।"
१ तो दीवायरणेण भणियं-कण्ह ! मया पहम्ममाणेण पइण्णा पडिवण्णा जहा-तुमे मोत्त रण परं दुवे वि ण अण्णस्स सुरगय मेतम्स वि जन्तुगो मोक्खो,...........
[चउवन महापुरिस चरियं, पृष्ठ १६६]
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