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मद्य-निषेध] भगवान् श्री अरिष्टनेमि
४०६ लगने पर इधर-उधर पानी की तलाश करता हुआ वह एक शिलाकुण्ड के पास गया और अपनी प्यास बझाने हेतु उसमें से पानी पीने लगा। प्रथम चल्ल के प्रास्वादन से ही उसे पता चल गया कि कुण्ड में पानी नहीं अपितु परम स्वादिष्ट मदिरा है।
द्वारिकावासियों ने जो सुरापात्र वहां शिलाओं पर पटके थे वह सुरा बह कर उस शिलाकुण्ड में एकत्रित हो गई थी। सुगन्धित विविध पुष्पों के कण्ड में भरकर गिरने से वह मदिरा बड़ी ही सुगन्धित और सुस्वादु हो गई थी।
शाम्ब के सेवक ने जी भर वह स्वादु सुरा पी और अपने पास की केतली भी उससे भर ली। द्वारिका लौटकर उस सेवक ने मदिरा की केतली शाम्ब को भेंट की। शाम्ब सायंकाल में उस सुस्वादु सुरा का रसास्वादन कर उस सुरा की सराहना करते हुए बार-बार अपने सेवक से पूछने लगे कि इतनी स्वादिष्ट सूरा वह कहां से लाया है ?
सेवक से सुराकुण्ड का पता पाकर शाम्ब दूसरे दिन कई युवा यदु-कमारों के साथ कादम्बरी गुफा के पास उस कुण्ड पर गया। उन यादव-कमारों ने उस कादम्बरी मदिरा को बड़े ही चाव के साथ खूब छक कर पिया और नशे में झूमने लगे।
अचानक उनकी दृष्टि उस पर्वत पर ध्यानस्थ द्वैपायन ऋषि पर पड़ी। नशे में चर शाम्ब उसे देखते ही उस पर यह कहते हुए टूट पड़ा-"यह स्वान हमारी प्यारी द्वारिका और प्राणप्रिय यादव कुल का नाश करेगा । अरे ! इसे इसी समय मार दिया जाय, फिर यह मरा हुआ किसे मारेगा?''
बस, फिर क्या था, वे सभी मदान्ध यादव-कुमार द्वैपायन पर लातों, घसों और पत्थरों की वर्षा करने लगे और उसे अधमरा कर भूमि पर पटक द्वारिका में प्रा अपने-अपने घरों में जा घुसे ।
श्रीकृष्ण को अपने गुप्तचरों से इस घटना का पता चला तो वे यदुकमारों के इस कर कृत्य पर बड़े क्रुद्ध हुए। बलराम को साथ ले कृष्ण तत्काल द्वैपायन के पास पहुंचे और कुमारों की दुष्टता के लिए क्षमा माँगते हए बारबार उसे शान्त करने का पूर्ण रूप से प्रयास करने लगे।
द्वैपायन का क्रोध किसी तरह शान्त नहीं हुआ। उसने कहा- "कमार जिस समय मुझे निर्दयतापूर्वक मार रहे थे, उस समय मैं निदान कर चुका है कि १ शाम्बो बभाषे स्वानित्थमयं मे नगरि कुलम् । हन्ता तदन्यतामेष, हनिष्यति हतः कथम् ॥२८॥
[त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व ८, सर्ग १]
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