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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ द्वारिका के रक्षार्थ लोगों के मुख से प्रभु प्ररिष्टनेमि द्वारा कही गई बात सुन कर द्वैपायन परिव्राजक भी द्वारिका एवं द्वारिकावासियों के रक्षार्थ नगर से दूर वन में रहने लगा । ४०६ बलराम के सारथि व भाई सिद्धार्थ ने भावी द्वारिकादाह की बात सुन कर संसार से विरक्त हो प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की। बलराम ने भी उसे यह कहते हुए दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति दी कि देव होने पर वह समय पर प्रतिबोध देने अवश्य श्रावे । मुनि-धर्म स्वीकार कर सिद्धार्थ ने छः मास की घोर तपस्या की और आयु पूर्ण कर देव हो गया । द्वारिका के रक्षार्थ मद्य-निषेध श्री कृष्ण ने भी द्वारिका, यादवों एवं प्रजाजनों के रक्षार्थ द्वारिका में कड़ी मद्य-निषेधाज्ञा घोषित करवाई कि जो भी कोई सुरापान करेगा उसे कड़े से कड़ा दण्ड दिया जायगा । " न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी" इस कहावत को चरितार्थ करते हुए कृष्ण ने सुरा को सब अनर्थों का मूल समझ कर द्वारिका के समस्त मद्यपात्रों को द्वारिका से कुछ दूर कदम्ब वन में पर्वत की कादम्बरी गुफा के शिलाखण्डों पर फिंकवा दिया । प्रत्येक नागरिक के मन में द्वारिका के प्रति प्रगाढ़ प्रेम था, अतः उसे विनाश से बचाने के लिए समस्त प्रजाजन द्वारिका से सुरा का नाम तक मिटा देने का दृढ़ संकल्प लिए प्रगणित मद्यपात्रों को ले जाकर कादम्बरी गुफा की चट्टानों पर पटकने में जुट गये । श्रीकृष्ण ने प्रमुख नागरिकों को और विशेषतः समस्त क्षत्रिय कुमारों को इस निषेधाज्ञा का पूर्णरूप से पालन करने के लिए सावधान किया कि वे जीवन भर कभी मद्यपान न करें, क्योंकि मद्य बुद्धि को विलुप्त करने वाला धौर सब अर्थो का मूल है । इस प्रज्ञा के साथ ही साथ श्रीकृष्ण ने यह भी घोषणा करवा दी कि अलकासी इस सुन्दर द्वारिकापुरी का सुरा, अग्नि एवं द्वंपायन के निमित्त विनाश हो उससे पूर्व जो भी भगवान् नेमिनाथ के चरणों में दीक्षित होना चाहें, उन्हें वे सब प्रकार से हार्दिक सहयोग देने के लिए सहर्ष तत्पर हैं । 1 श्रीकृष्ण की इस उदार घोषणा से उत्साहित हो अनेक राजानों, रानियों राजकुमारों एवं नागरिकों ने संसार को निस्सार और दुःख का चाकर समझकर भगवान् अरिष्टनेमि के पास मुनि-धर्म स्वीकार किया । कुछ ही समय पश्चात् शाम्बकुमार का एक सेवक किसी कार्यवश ' कादम्बरी गुफा की ओर जा पहुँचा । वैशाख की कड़ी धूप के कारण प्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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