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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् अरिष्टनेमि के प्रार्थना की । देव ने पद्मनाभ से कहा-"द्रौपदी पतिव्रता है । वह पांडवों के अतिरिक्त किसी भी पुरुष को नहीं चाहती। फिर भी तुम्हारी प्रीति हेतु मैं उसे ले पाता है।"
यह कहकर देव हस्तिनापुर पहुंचा और अवस्वापिनी विद्या से द्रौपदी को प्रगाढ़ निद्राधीन कर पानाम के पास ले पाया।
निद्रा खुलते ही सारी स्थिति देख कर द्रौपदी बड़ी चिन्तित हुई। उसे चिन्तित देख पद्मनाभ ने कहा-"सुन्दरी ! किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। मैं धातकीखण्ड द्वीप की अमरकंका नगरी का नरेश्वर पमनाभ हूँ। तुम्हें अपनी पट्टमहिषी बनाने हेतु मैंने तुम्हें यहाँ मंगवाया है।"
द्रौपदी ने क्षणभर में ही अपनी जटिल स्थिति को समझ लिया और बड़ा दूरदर्शितापूर्ण उत्तर दिया-"राजन् ! भरतखण्ड में कृष्ण वासुदेव मेरे रक्षक हैं, वे यदि छः मास के भीतर मेरी खोज करते हुए यहाँ नहीं पायेंगे तो मैं तुम्हारे निर्देशानुसार विचार करूंगी।"
___ यहाँ किसी दूसरे द्वीप के किसी आदमी का पहुंचना अशक्य है, यह समझ कर कुटिल पद्मनाभ ने द्रौपदी की बात मान ली और द्रौपदी को कन्याओं के अन्तःपुर में रख दिया । वहाँ द्रौपदी प्रायंबिल तप करते हुए रहने लगी।
प्रातःकाल होते ही पाण्डवों ने द्रौपदी को न पाकर उसे ढूढ़ने के सब प्रयास किये, पर द्रौपदी का कहीं पता न चला । लाचार हो उन्होंने कुन्ती के माध्यम से श्रीकृष्ण को निवेदन किया।
__ कृष्ण भी यह सुन कर क्षणभर विचार में पड़ गये । उसी समय नारद स्वयं द्वारा उत्पन्न किये गये अनर्थ का कौतुक देखने वहाँ आ पहुँचे । कृष्ण द्वारा द्रौपदी का पता पूछने पर नारद ने कहा कि उन्होंने धातकीखण्ड द्वीप की अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ के रनिवास में द्रौपदी जैसा रूप देखा है।
नारद की बात सुन कर कृष्ण ने पाण्डवों एवं सेना के साथ मागध तीर्थ की ओर प्रयाण किया और वहाँ अष्टम तप से लवण समुद्र के अधिष्ठाता सुस्थित देव का चिंतन किया । सुस्थित यह कहते हुए उपस्थित हुअा-“कहिये ! मैं आपकी क्या सेवा करू ?"
कृष्ण ने कहा-"पद्मनाभ ने सती द्रौपदी का हरण कर लिया है, इसलिए ऐसा उपाय करो जिससे वह लाई जा सके।" १ ज्ञाता धर्म कथा, १११६ २ वही।
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