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________________ ३६८ जैन धर्म का मौलिक इतिहास (नेमिनाथ के मुनिसंघ में की वैसे ही उस पुरुष ने गज सुकुमाल के लाखों भवो के कर्मों को क्षय करने में सहायता प्रदान की है।" । जब श्रीकृष्ण ने उस पुरुष के सम्बन्ध में जानने का विशेष आग्रह किया तब श्री नेमिनाथ ने कहा-"द्वारिका लौटते समय जो तुम्हें अपने सम्मुख देख कर भूमि पर गिर पड़े, वहीं गज सुकुमाल का प्राणहारी है।" कृष्ण त्वरा में भगवान् को वन्दन कर द्वारिका की ओर चल पड़े। जब सोमिल को यह मालम हा कि कृष्ण भगवान नेमिनाथ के दर्शन एवं वन्दन के लिए गये हैं, तो वह मारे भय के थर-थर काँपने लगा। उसने सोचा- "सर्वज्ञ भगवान नेमिनाथ से कृष्ण को मेरे अपराध के सम्बन्ध में पता चल जायेगा और कृष्ण अपने प्राणप्रिय छोटे भाई की हत्या के अपराध में मुझे दारुण प्राणदण्ड देंगे।" यह सोच कर सोमिल अपने प्राण बचाने के लिए अपने घर से भाग निकला । संयोगवश वह उसी मार्ग से आ निकला, जिस मार्ग से श्रीकृष्ण लौट रहे थे । गजारूढ़ श्रीकृष्ण को अपने सम्मुख देखते ही सोमिल पातंकित हो भूमि पर गिर पड़ा और मारे भय के वह तत्काल वहीं पर मर गया। अरिहंत अरिष्टनेमि ने गज सुकुमाल जैसे राजकुमार को क्षमावीर बनाकर उनका उद्धार किया। गज सुकुमाल की संयमसाधना से यादव-कुल में व्यापक प्रभाव फैल गया और उसके फलस्वरूप अनेक कर्मवीर राजकुमारों ने धर्मवीर बनकर यात्म-साधना के मार्ग में प्रादर्श प्रस्तुत किया। नेमिनाथ के मुनिसंघ में सर्वोत्कृष्ट मुनि भगवान नेमिनाथ के साधु-संघ में यों तो सभी साधु घोर तपस्वी और दकर करणी करने वाले थे, तथापि उन सब मुनियों में ढंढरण मुनि का स्थान म्वयं भगवान् नेमिनाथ द्वारा सर्वोत्कृष्ट माना गया है । वासूदेव श्री कृष्ण की 'ढंढरणा' रानी के आत्मज 'ढंढरण कमार' भगवान नेमिनाथ का धर्मोपदेश सुन कर विरक्त हो गये। उन्होंने पूर्ण यौवन में अपनी अनेक सद्यःपरिणीता सुन्दर पत्नियों और ऐश्वर्य का परित्याग कर भगवान् नेमिनाथ के पास मुनि-दीक्षा ग्रहण की। इनकी दीक्षा के समय श्री कृष्ण ने वड़ा ही भव्य निष्क्रमणोत्सव किया । मनि ढंढण दीक्षित होकर सदा प्रभ नेमिनाथ की सेवा में रहे। सहज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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