________________
३६७
गज सुकुमाल]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि पर वे महामुनि प्रहत् अरिष्टनेमि के उपदेश से जड़-चेतन के पृषकत्व को समझकर सच्चे स्थितप्रज्ञ एवं अन्तर्द्रष्टा राजर्षि बन चुके थे। नमी राजर्षि ने मिथिला को जलते देखकर कहा था
"मिहिलाए डज्झमाणीए न मे डन्झइ किंचणं" परन्तु गज सुकुमाल ने तो अपने शरीर के उत्तमांग को जलते हुए देखकर भी निर्वात प्रदेश-स्थित दीपशिखा की तरह अचल-प्रकम्प ध्यान से अडोल रहकर बिना बोले ही यह बता दिया
"डझमाणे सरीरम्मि, न मे डज्झइ किंचरणं" घन्य है उस वीर साधक के अदम्य धैर्य और निश्चल मनोवृत्ति को ! राग-ष रहित होकर उसने उत्कृष्ट प्रध्यवसायों की प्रबल भाग में समस्त कर्मसमूह को अन्तमुहर्त में ही भस्मावशेष कर केवलज्ञान और केवलदर्शन के साथ शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, निरंजन, निरंकार, सच्चिदानन्द शिवस्वरूप की अवाप्ति एवं मुक्ति की प्राप्ति करली। कोटि-कोटि जन्मों की तपस्यामों से भी दुष्प्राप्य मोक्ष को उन्होंने एक दिन से भी कम की सच्ची साधना से प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया कि मानव की भावपूर्ण उत्कट साधना और लगन के सामने सिद्धि कोई दूर एवं दुष्प्राप्य नहीं है।
गज सुकुमाल के लिए कृष्ण की जिज्ञासा दूसरे दिन प्रातःकाल कृष्ण महाराज गज पर मारूढ़ हो भगवान् नेमिनाथ को वन्दन करने निकले । वन्दन के पश्चात् जब उन्होंने गज सुकुमाल मुनि को नहीं देखा तो पूछा-"भगवन् ! मेरा छोटा भाई गज सुकुमाल मुनि कहां है ?"
भगवान् ने कहा-"कृष्ण ! मुनि गज सुकुमाल ने अपना कार्य सिद्ध कर लिया है।"
कृष्ण बोले-“भगवन्, यह कैसे ?"
इस पर परिहंत अरिष्टनेमि ने सारी घटना कह सुनाई। कृष्ण ने रोष में प्राकर कहा-"प्रभो ! वह कौन है, जिसने गज सुकुमाल को अकाल में ही गीवन-रहित कर दिया ?"
भगवान् ने कृष्ण को उपशान्त करते हुए कहा-"कृष्ण! तुम रोष मत करो, उस पुरुष ने गज सुकुमाल को सिद्धि प्राप्त करने में सहायता प्रदान की है। द्वारवती से प्राते समय जैसे तुमने ईट उठा कर वृद्ध ब्राह्मण की सहायता.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org