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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भमामूर्ति महामुनि श्मशान में प्राये, स्थंडिल की प्रतिलेखना की और फिर थोड़ा शरीर को झुका कर दोनों पैर संकुचित कर एक रात्रि की महाप्रतिमा में ध्यानस्थ हो गये।
उधर सोमिल ब्राह्मण, जो यज्ञ की समिधा-लकडी आदि के लिए नगर के बाहर गया हुआ था, समिधा, दर्भ, कुश और पत्ते लेकर लौटते समय महाकाल श्मशान के पास से निकला। सन्ध्या के समय वहां गज सुकमाल मुनि को ध्यानस्थ देखते ही पूर्वजन्म के वैर की स्मृति से वह क्रुद्ध हुमा और उत्तेजित हो बोला- "अरे इस गज सुकमाल ने मेरी पुत्री सोमा को बिना दोष के काल-प्राप्त दशा में छोड़कर प्रव्रज्या ग्रहण की है, अतः मुझे गज सुकमाल से बदला लेना चाहिए।"
ऐसा सोच कर उसने चहं ओर देखा और गीली मिट्टी लेकर गज सुकमाल मुनि के सिर पर मिट्टी की पाज बांधकर जलती हुई चिता में से केसू के फूल के समान लाल-लाल ज्वाला से जगमगाते अंगारे मस्तक पर रख दिये।
पाप मानव को निर्भय नहीं रहने देता । सोमिल भी भयभीत होकर पीछे हटा और छुपता हुआ दबे पाँवों अपने घर चला गया ।
गज सुकुमाल मुनि के शरीर में उन अंगारों से भयंकर वेदना उत्पन्न हुई जो असह्य थी, पर मुनि ने मन से भी सोमिल ब्राह्मण से द्वेष नहीं किया। शान्त मन से सहन करते रहे। ज्यों-ज्यों श्मशान की सनसनाती वायु से मुनि के मस्तक पर अग्नि की ज्वाला तेज होती गई और सिर की नाड़िये, नसें तड़तड़कर टूटने लगीं, त्यों-त्यों मुनि के मन की निर्मल ज्ञान-धारा तेज होने लगी। शास्त्रीय शब्दज्ञान अति अल्प होने पर भी मुनि का प्रात्मज्ञान और चरित्रबल उच्चतम था । दीक्षा के प्रथम दिन बिना पूर्वाभ्यास के ही भिक्षु प्रतिमा की इस कठोर साधना पर अग्रसर होना ही उनके उन्नत-मनोबल का परिचायक था। शुक्ल-ध्यान के चारित्र के सर्वोच्च शिखर पर चढ़कर उन्होंने वीतराग वाणी को पूर्णरूप से हृदयंगम कर लिया। वे तन्मय हो गये, स्व-पर के भेद को समझ लेने से उनका अन्तर्मन गूंज रहा था-"शरीर के जलने पर मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है, क्योंकि मैं अजर, अमर, अविनाशी हूं। मुझे न अग्नि जला सकती, न शस्त्र काट सकते और न भौतिक सुख-दुःखों के ये झोंके ही हिला सकते हैं। मैं सदा अच्छेद्य, अभेद्य और अदाह्य हं। यह सोमिल जो अपना पुराना ऋण ले रहा है, वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ता, वह तो उल्टे मेरे ऋणमुक्त होने में सहायता कर रहा है । अतः ऋण चुकाने में दुःख, चिन्ता, क्षोभ और पानाकानी का कारण ही क्या है ?"
कितना साहसपूर्ण विचार था ! गज सुकुमाल चाहते तो सिर को थोड़ासा झुकाकर उस पर रखे भंगारों को एक हल्के झटके से ही नीचे गिरा सकते थे
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