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अचल, (७) पुण्डरीक, (८) अजितंधर, (९) अजितनाभि, (१०) पीठ और (११) सात्यकि-ये ग्यारह रुद्र माने गये हैं।
(१) भीम, (२) महाभीम, (३) रुद्र, (४) महारुद्र, (५) काल, (६) महाकाल, (७) दुर्मुख, (८) नरमुख और (९) अधोमुख नामक नौ नारद हुए। ये सभी भव्य एवं मोक्षगामी माने गये हैं।
प्रथम रुद्र भगवान् ऋषभदेव के समय में, दूसरे रुद्र भगवान् अजितनाथ के समय में, तीसरे रुद्र से नौवें रुद्र तक सुविधिनाथ आदि सात तीर्थंकरों के समय में, दसवें रुद्र भगवान् शान्तिनाथ के समय में और ग्यारहवें रुद्र भगवान् महावीर के समय में हुए। अन्तिम दोनों रुद्र नरक के अधिकारी माने गये हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में धार्मिक इतिहास-लेखन का मुख्य दृष्टिकोण होने से चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव आदि का यथावत् विस्तृत वर्णन नहीं किया गया है। चक्रवर्तियों में से भरत और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का, वासुदेवों में श्रीकृष्ण का और प्रतिवासुदेवों में से जरासन्ध का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से संक्षिप्त वर्णन किया गया है। रुद्र एवं नारदों के लिए तिलोयपण्णत्ती के चतुर्थ महाधिकार में पठनीय सामग्री उल्लिखित है।
भगवान् महावीर के भक्त राजाओं में श्रेणिक, कूणिक, चेटक, उदायन आदि प्रमुख राजाओं का परिचय दिया गया है। श्रेणिक, भगवान् महावीर के शासन का प्रभावक भूपति हुआ है। उसने शासन-सेवा से तीर्थंकर-गोत्र का उपार्जन किया। पूर्वबद्ध निकाचित कर्म के कारण उसे प्रथम नरकभूमि में जाना पड़ा। उसने अपने नरक-गति के बंध को काटने हेतु सभी प्रकार के प्रयत्न किये। श्रमण भगवान् महावीर की चरण-शरण ग्रहण कर उसने अपने नरक-गमन से बचने का कारण पूछा। आवश्यक चूर्णि के अनुसार प्रभु ने उसे नरक से बचने के दो उपाय-क्रमशः कालशौकरिक से हिंसा छुड़ाना और कपिला ब्राह्मणी से भिक्षा दिलाना बताये। श्रेणिक चरित्र में नमुक्कारसी पच्चखाण, श्रेणिक की दादी द्वारा मुनि-दर्शन और पूणिया श्रावक से सामायिक का फल खरीदना-ये तीन कारण अधिक बताये गये हैं। श्रेणिक ने भरसक प्रयत्न किया पर नमुक्कारसी का व्रत करने में सफल नहीं हो सका। अपनी दादी द्वारा मुनिदर्शन के दूसरे उपाय के सम्बन्ध में उसे विश्वास था कि उसकी प्रार्थना पर उसकी दादी अवश्य ही मुनिदर्शन कर लेगी और उसके फलस्वरूप सहज ही वह नरक-गमन से बच जायेगा। परन्तु श्रेणिक द्वारा लाख प्रयत्न करने पर भी उसकी दादी ने मुनिदर्शन करना स्वीकार नहीं किया। नरक से बचने का तीसरा उपाय पूणिया श्रावक की सामायिक खरीदना था। पर पूणिया श्रावक की सामायिक तो त्रैलोक्य की समस्त सम्पत्ति से भी अधिक कीमती एवं अमूल्य थी अतः वह कीमत से मिलती ही कैसे ? अन्त में श्रेणिक ने समझ लिया कि उसका नरक-गमन अवश्यंभावी है।
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