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कारिया वि हवइ' होते हैं। उनका आचार विचारानुगामी और व्यवहार में अविरुद्ध होता है। निश्चय मार्ग के पूर्ण अधिकारी होते हुए भी तीर्थंकर व्यवहार-विरुद्ध प्रवृत्ति नहीं करते। तीर्थंकरों का रात्रि-विहार नहीं करना और मल्लिनाथ का केवलज्ञान के बाद भी साधु-सभा में न रहकर साध्वी-सभा में रहना आदि, व्यवहार-विरुद्ध प्रवृत्ति नहीं करने के ही प्रमाण हैं।
तीर्थंकरकालीन महापुरुष
भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक २४ तीर्थंकरों के समय में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो राज्याधिकारी होकर भी मुक्तिगामी माने गये हैं। उनमें २४ तीर्थंकरों के साथ बारह चक्रवर्ती, नव बलदेव, नव वासुदेव इस तरह कुल मिलाकर ५४ महापुरुष कहे गये हैं। पीछे और नव प्रतिवासुदेवों को जोड़ने से त्रिषष्टि शलाका-पुरुष के रूप में कहे जाने लगे।
भरत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव के समय में हुए जिनके सम्बन्ध में जैन, हिन्दू और बौद्ध-ये भारत की तीनों प्रमुख परम्पराएं एक मत से स्वीकार करती हैं कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर हमारे देश का नाम भारत
पड़ा।
सगर चक्रवर्ती दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ के समय में, मघवा और सनत्कुमार भगवान् धर्मनाथ एवं शान्तिनाथ के अन्तरकाल में हुए। भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरनाथ चक्री और तीर्थंकर दोनों ही थे। आठवें सुभौम चक्रवर्ती भगवान् अरनाथ और मल्लिनाथ के अन्तरकाल में हुए। नौवें चक्रवर्ती पद्म भगवान् मल्लिनाथ और भगवान् मुनिसुव्रत के अन्तरकाल में हुए। दसवें चक्रवर्ती हरिषेण भगवान् मुनिसुव्रत और भगवान् नमिनाथ के अन्तरकाल में हुए। ग्यारहवें चक्रवर्ती जय भगवान् नमिनाथ और भगवान् अरिष्टनेमि के अन्तरकाल में तथा बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भगवान् अरिष्टनेमि और भगवान् पार्श्वनाथ के मध्यवर्ती काल में हुए।
त्रिपृष्ठ आदि पांच वासुदेव भगवान् श्रेयांसनाथ आदि पांच तीर्थंकरों के काल में हए। भगवान अरनाथ और मल्लिनाथ के अन्तरकाल में पुण्डरीक, भगवान् मल्लिनाथ और मुनिसुव्रत के अन्तरकाल में दत्त नामक वासुदेव हुए। भगवान् मुनिसुव्रत और नमिनाथ के अन्तरकाल में लक्ष्मण वासुदेव और भगवान् अरिष्टनेमि के समय में श्रीकृष्ण वासुदेव हुए।
वासुदेव आदि की तरह ग्यारह रुद्र, ९ नारद और कहीं बाहुबली आदि चौबीस कामदेव भी माने गये हैं।
(१) भीमावलि, (२) जितशत्रु, (३) रुद्र, (४) वैश्वानर, (५) सुप्रतिष्ठ, (६)
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