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________________ ३६० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [परि० द्वारा अद्भुत पूरा वृत्तान्त सुना और एक ही जन्म में दो कुलों में उत्पन्न होने की घटना से हम छहों भाइयों को संसार से पूर्ण विरक्ति हो गई । कर्मों का कैसा विचित्र खेल है ? यह संसार प्रसार है और विषयों का अन्तिम परिणाम घोर दुःख हैं-यह सोचकर हम छहों भाइयों ने भगवान् नेमिनाथ के चरणों में दीक्षा ग्रहण करली।" मुनि की बात समाप्त होते ही महारानी देवकी मूछित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। दासियों द्वारा शीतलोपचार से थोड़ी देर में देवकी फिर सचेत हुई और उस का मातहृदय सागर की तरह हिलोरें लेने लगा। मुनियों को देखकर उसके स्तनों से दूध की और अाँखों से अश्रुओं की धाराएं एक साथ बहने लगीं। देवकी रोते-रोते अत्यन्त करुण स्वर में कहने लगी- "अहो ! ऐसे पुत्र रत्नों को पाकर भी मैं परम प्रभागिन ही रही जो दुर्दैव ने मुझसे इनको छीन लिया । मेरी पुत्र-प्राप्ति तो बिल्कुल उस अभागे के समान है जो स्वप्न में अमूल्य रत्न प्राप्त कर धन-कुवेर बन जाता है किन्तु जगने पर कंगाल का कंगाल । कितनी दयनीय है मेरी स्थिति कि पहले तो मैं सजल उपजाऊ भूमि के फल-फूलों से लदे सघन सुन्दर तरुवर की तरह खूब फली-फली, किन्तु असमय में ही ऊसर भूमि की लता के समान ये मेरे अनुपम अमृतफल-मेरे पुत्र मुझसे विलग हो दूर गिर पड़े। परम भाग्यवती है वह नारी, जिसने बाललीला के कारण बूलि-धूसरित इन सलोने शिशुओं के मुखकमल को अगणित बार बड़े प्यार से चूमा है।" देवकी के इस अन्तस्तलस्पशी करुण विलाप को सुनकर मुनियों को छोड़ वहाँ उपस्थित अन्य सब लोगों की आंखें अश्रु-प्रवाहित करने लगीं।' ___ बिजली की तरह यह समाचार सारी द्वारिका में फैल गया। नागरिकों के मुख से यह बात सुनकर वे चारों मुनि भी वहाँ लौट आये और छहों मनि देवकी को समझाने लगे-"न कोई किसी की माता है और न कोई किसी का पिता अथवा पुत्र । इस संसार में सब प्राणी अपने-अपने कर्म-बन्धन से बँधे रहट में मत्तिका-पात्र (घटी-घड़ली) की तरह जन्म-मरण के चक्कर में निरन्तर परिभ्रमण करते हुए भटक रहे हैं । प्राणी एक जन्म में किसी का पिता होकर दूसरे जन्म में उसका पुत्र हो जाता है और तदनन्तर फिर किसी जन्म में पिता बन जाता है। इसी तरह एक जन्म की माता दूसरे जन्म में पुत्री, एक जन्म का १ अन्तगड़ सूत्र में देवकी द्वारा पूछे जाने पर यह बात प्ररिहन्त नेमिनाथ ने कही है और वहीं पर देवकी का मुनियों के दर्शन से वात्सल्य उमड़ पड़ा और उसके स्तनों से दूध छूटने लगा एवं हर्षातिरेक से रोम-रोम पुलकित हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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