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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [परि० द्वारा अद्भुत निकलकर शीघ्रता से मेरे पास चली प्राई हो, हे देवकी ! क्या यह बात ठीक
देवकी ने कहा-"हाँ भगवन् ! ऐसा ही है।" प्रभु की दिव्य ध्वनि प्रस्फुटित हुई–"हे देवानुप्रिये ! उस काल उस समय में भहिलपुर नगर में नाग नाम का गायापति रहा करता था, जो प्राढ्य (महान् ऋद्धिशाली) था । उस नाग गाथापति की सुलसा नामक पत्नी थी। उस सुलसा गाथापत्नी को बाल्यावस्था में ही किसी निमित्तज्ञ ने कहा-यह बालिका मतवत्सा यानी मत बालको को जन्म देने वाली होगी। तत्पश्चात् वह सुलसा बाल्यकाल से ही हरिणेगमेषी देव की भक्त बन गई।
__ उसने हरिणेगमेषी देव की मूर्ति बनाई । मूर्ति बना कर प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके यावत् दुःस्वप्न निवारणार्थ प्रायश्चित्त कर गीली साड़ी पहने हुए बहुमूल्य पुष्पों से उसकी मर्चना करती। पुष्पों द्वारा पूजा के पश्चात् घुटने टिकाकर पांचों अंग नवा कर प्रणाम करती, तदनन्तर पाहार करती, निहार करती एवं प्रपनी दैनन्दिनी के अन्य कार्य करती।
तत्पश्चात् उस सुलसा गाथापत्नी की उस भक्ति-बहुमान पूर्वक की गई सुश्रूषा से देव प्रसन्न हो गया । प्रसन्न होने के पश्चात् हरिणगमेषी देव सुलसा गाथापत्नी पर अनुकम्पा करने हेतु सुलसा गाथापत्नी को तथा तुम्हें-दोनों को समकाल में ही ऋतुमती (रजस्वला) करता और तब तुम दोनों समकाल में हो गर्भ धारण करतीं, समकाल में ही गर्भ का वहन करतीं और समकाल में ही बालक को जन्म देती।
प्रसवकाल में वह सुलसा गाथापत्नी मरे हुए बालक को जन्म देती।
तब वह हरिणगमेषी देव सुलसा पर अनुकम्पा करने के लिये उसके मत बालक को दोनों हाथों में लेता और लेकर तुम्हारे पास लाता । इधर उस समय तुम भी नव मास का काल पूर्ण होने पर सुकुमार बालक को जन्म देतीं।
हे देवानुप्रिये ! जो तुम्हारे पुत्र होते उनको भी हरिणगमेषी देव तुम्हारे पास से अपने दोनों हाथों में ग्रहण करता और उन्हें ग्रहण कर सुलसा गाथापत्नी के पास लाकर रख देता (पहँचा देता)।
प्रतः वास्तव में हे देवकी ! ये तुम्हारे पुत्र हैं, सुलसा गाथापत्नी के नहीं है । इसके अनन्तर उस देवकी देवी ने अरिहंत अरिष्टनेमि के मुखारविन्द से इस प्रकार की यह रहस्यपूर्ण बात सुनकर तथा हृदयंगम कर हृष्ट-तुष्ट यावत् प्रफुल्ल हृदया होकर अरिहन्त अरिष्टनेमि भगवान् को वंदन-नमस्कार किया
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