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________________ ३७२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [रा० द्वारा ने० को भोगमा इधर राजीमती अनिष्ट की आशंका से सिसक-सिसक कर रोती हई प्रांसू बहा रही थी और उसे उसकी सहेलियां धैर्य बँधा रही थी। उधर पाते हुए नेमिकुमार ने पशुओं के करुण क्रन्दन को सुनकर जानते हुए भी अपने सारथि (गज-वाहक) से पूछा- “सारथे ! यह किसका करुण-क्रन्दन कर्णगोचर हो रहा है ?" सारथि ने कहा-"स्वामिन ! क्या आपको पता नहीं कि आपके विवाहोत्सव के उपलक्ष में विविध भोज्य-सामग्री बनाने हेतु अनेक बकरे, मेंढे तथा वन्य पशु-पक्षी लाये गये हैं। प्राणिमात्र को अपने प्राण परम प्रिय हैं, अतः ये क्रन्दन कर रहे हैं।" नेमिनाथ ने महावत को पशुओं के बाड़ों की ओर हाथी को बढ़ाने की आज्ञा दी। वहाँ पहुँच कर नेमिकूमार ने देखा कि अगणित पशूत्रों की गर्दन और पैर रस्सियों से बंधे हुए हैं एवं अगणित पक्षी पिंजरों तथा जाल-पाशों में जकड़े म्लानमुख कांपते हुए दयनीय स्थिति में बन्द हैं । __ आनन्ददायक नेमिकुमार को देखते ही पशु-पक्षियों ने अपनी बोली में अपनी करुण पुकार सुनानी प्रारम्भ की-"नाथ ! हम दीन, दुःखी, असहायों की रक्षा करो।" दयामूर्ति नेमिकुमार का करुण, कोमल हृदय द्रवीभूत हो गया और उन्होंने अपने सारथि को प्राज्ञा दी कि वह उन सब पशु-पक्षियों को तत्क्षण मुक्त कर दे। देखते ही देखते सब पशु-पक्षी मुक्त कर दिये गये। स्नेहपूर्ण दृष्टि से नेमिनाथ के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हए पशू यथेप्सित स्थानों की ओर दौड़ पड़े और पक्षि-समूह पंख फैला कर अपने विविध कण्ठरवों से खुशी-खुशी नेमिनाथ की यशोगाथाएं गाते हुए, अनन्त आकाश में उड़ते हुए तिरोहित हो गये। पशु-पक्षियों को विमुक्त करने के पश्चात् नेमिनाथ ने अपने कानों के कुडल-यूगल, करधनी एवं समस्त प्राभूषण उतार कर सारथि को दे दिये और अपना हाथी अपने प्रासाद की ओर मोड़ दिया। उनको लौटते देख यादवों पर मानो अनभ्र वज्रपात सा हो गया । माता शिवा महारानी, महाराज समुद्रविजय, श्रीकृष्ण-बलदेव आदि यादव-मुख्य अपने-अपने वाहनों से उतर पड़े और नेमिनाथ के सम्मुख राह रोककर खड़े हो गये । १ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो । प्राभरणारिण य सव्वारिण, सारहिस्स परणामए ।।२०।। [उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २२, गाथा २०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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