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१४.
भगवान् अनन्तनाथ के जन्म के पश्चात् ४ सागर और २० लाख वर्ष व्यतीत होने पर भगवान् धर्मनाथ का जन्म हुआ। भगवान् धर्मनाथ के जन्म के पश्चात पौन पल्य कम तीन सागर और ९ लाख वर्ष बीतने पर भगवान् शान्तिनाथ का जन्म हुआ। भगवान् शान्तिनाथ के जन्म के पश्चात् आधा पल्य और ५ हजार वर्ष बीतने पर भगवान् श्री कुंथुनाथ का जन्म हुआ। भगवान् कुंथुनाथ के जन्म के पश्चात् ग्यारह हजार वर्ष कम एक हजार करोड़ वर्ष न्यून पाव पल्य बीतने पर भगवान् अरनाथ का जन्म हुआ। भगवान् अरनाथ के जन्म के पश्चात् उनत्तीस हजार वर्ष अधिक एक हजार करोड़ वर्ष बीतने पर भगवान् मल्लिनाथ का जन्म हुआ। भगवान् मल्लिनाथ के जन्म के पश्चात् चौवन लाख पचीस हजार वर्ष व्यतीत होने पर भगवान् मुनिसुव्रत का जन्म हुआ। भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के जन्म के पश्चात् ६ लाख बीस हजार वर्ष बीतने पर भगवान् नमिनाथ का जन्म हुआ। भगवान् नमिनाथ के जन्म के पश्चात् पाँच लाख नौ हजार वर्ष बीतने पर भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ। भगवान् अरिष्टनेमि के जन्म के पश्चात् चौरासी हजार ६५० वर्ष व्यतीत होने पर भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। भगवान् पार्श्वनाथ के जन्म के पश्चात् दो सौ अठहत्तर (२७८) वर्ष व्यतीत होने पर भगवान् महावीर का जन्म हुआ।
२३.
विचार और आचार
.. सामान्यरूप से देखा जाता है कि अच्छे-से-अच्छे महात्मा भी उपदेश में जैसे उच्च विचार प्रस्तुत करते हैं, आचार उनके अनुरूप नहीं पाल सकते। अनेक तो उससे विपरीत आचरण करने वाले भी मिलेंगे। परन्तु तीर्थंकरों के जीवन की यह विशेषता होती है कि वे जिस प्रकार के उच्च विचार रखते हैं, पूर्णतः वैसा का वैसा ही प्रचार, समुच्चार और आचार भी रखते हैं। उनका आचार उनके विचारों से भिन्न अथवा विदिशागामी नहीं होता।
फिर भी तीर्थंकरों की जीवन घटनाएं देखकर कई स्थलों पर साधारण व्यक्ति को शंकाएं हो सकती हैं। उदाहरणस्वरूप कुछ आचार्यों ने लिखा है कि भगवान् महावीर ने दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् ज्योंही विहार किया तो एक दरिद्र
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