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________________ ३६४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [अंरिष्टनेमि का कृष्ण ने स्नेहातिरेक से कुमार अरिष्टनेमि को अंक में भरते हए कहा"मझे प्रसन्नता हो रही है कि मेरे छोटे भाई ने पाञ्चजन्य शंख को बजाया है। माज तक मेरी यह धारणा थी कि इसे मेरे अतिरिक्त कोई नहीं बजा सकता। कुमार ! अपन दोनों भाई व्यायामशाला में चलकर बल-परीक्षा करलें कि किसमें कितना अधिक बल है।" कुमार अरिष्टनेमि ने सहज सरल स्वर में कहा- “जैसी आपकी इच्छा।" यादव कुमारों से घिरे हुए दोनों नर-शार्दूल व्यायामशाला में पहुँचे । सहज करुणार्द्र कुमार अरिष्टनेमि ने मन ही मन सोचा-"कहीं मेरी भुजाओं, वक्ष और जंघाओं के संघर्ष से मल्लयुद्ध में मेरे बल से अनभिज्ञ बड़े भाई कृष्ण को पीड़ा न हो जाय ।" यह सोचकर उन्होंने कहा--"भैया ! भूलुण्ठनादि क्रिया वाले इस ग्राम्य मल्लयुद्ध की अपेक्षा बाहु को झुकाने से भी बल का परीक्षण किया जा सकता है ।" श्रीकृष्ण ने कुमार अरिष्टनेमि से सहमति प्रकट करते हुए अपनी प्रचण्ड विशाल दाहिनी भुजा फैला दी और कहा-“कुमार ! देखें, इसे झुकाना ।" कुमार अरिष्टनेमि ने बिना प्रयास के सहज ही में कमल की कोमल डण्डी की तरह कृष्ण की भुजा को झुका दिया। श्रीकृष्ण ने कहा-"अच्छा कुमार ! अब तुम अपनी भुजा फैलानो।" कुमार अरिष्टनेमि ने भी सहज-मुद्रा में अपनी भुजा फैलाई। . श्रीकृष्ण ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर कुमार अरिष्टनेमि की भजा को झुकाने का प्रयास किया पर वह किंचित् मात्र भी नहीं झुकी । अन्त में कृष्ण ने अपने दोनों वज्र-कठोर हाथों से कुमार अरिष्टनेमि की भुजा को कस कर पकड़ा और अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अपने पैरों को भूमि से ऊपर उठा शरीर का सारा भार भुजा पर पटकते हुए बड़े जोर का झटका लगाया, वे कुमार अरिष्टनेमि की भुजा पकड़े अधर झूलने लगे पर कुमार की भुजा को नहीं झुका सके। श्रीकृष्ण को कूमार का अपरिमित बल देखकर बड़ा आश्चर्य हमा। उन्होंने कुमार की भुजा छोड़कर उन्हें हृदय से लगा लिया और बोले-"प्रिय अनुज ! मुझे तुम्हारे अलौकिक बल को देखकर इतनी प्रसन्नता हुई है कि जिस प्रकार मेरे भुजबल के सहारे बलराम सभी योद्धाओं को तुच्छ समझते हैं, उसी तरह मैं तुम्हारी शक्ति के भरोसे समस्त संसार के योद्धाओं को तृणवत् समझता हूँ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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