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________________ और कृष्ण द्वारा जरासंध-वध] भगवान् श्री अरिष्टनेमि आकाश की अदृश्य शक्तियों ने इस घोषणा के साथ कि "नवें वासुदेव प्रकट हो गये हैं", कृष्ण पर गन्धोदक और पुष्पों की वर्षा की। करुणा कृष्ण ने जरासन्ध से कहा-"मगधराज ! क्या यह भी मेरी कोई माया है ? अब भी समय है कि तुम मेरे प्राज्ञानुवर्ती होकर अपने घर लौट जानो और आनन्द के साथ अपनी सम्पदा का उपभोग करो । दुःख के मूल कारण मान को छोड़ दो।" पर अभिमानी जरासन्ध ने बड़े गर्व के साथ कहा-"जरा मेरे चक्र को मेरी ओर चला कर तो देख ।" बस, फिर क्या था, कृष्ण ने चक्ररत्न को जरासन्ध की ओर घमाया। उसने तत्काल जरासन्ध का सिर काट कर पृथ्वी पर लुढ़का दिया। यादव विजयोल्लास में जयजयकार से दशों दिशाओं को गुजाने लगे। भगवान् अरिष्टनेमि ने भी अपने रथ की वर्तुलाकारगति से अवरुद्ध सब राजाओं को मुक्त कर दिया । उन सब राजामों ने प्रभु-चरणों में नमस्कार करते हुए कहा--"करुणासिन्धो ! जरासन्ध और हम लोगों ने अपनी मूढ़तावश स्वयं का सर्वनाश किया है । जिस दिन प्राप यदुकुल में अवतरित हुए, उसी दिन से हमें समझ लेना चाहिए था कि यादवों को कोई नहीं जीत सकता । अस्तु, अब हम लोग आपकी शरण में हैं।" __ अरिष्टनेमि उन सब राजाओं के साथ कृष्ण के पास पहुंचे। उन्हें देखते ही श्रीकृष्ण रथ से कूद पड़े और मरिष्टनेमि का प्रगाढ़ प्रालिंगन करने लगे। अरिष्टनेमि के कहने पर श्रीकृष्ण ने उन सब राजामों के राज्य उन्हें दे दिये । समुद्रविजय के कहने से जरासन्ध के पुत्र सहदेव को मगध का चतुर्थाश राज्य दिया। • तदनन्तर पाण्डवों को हस्तिनापुर का, हिरण्य नाम के पुत्र रुक्मनाभ को कोशल का और समद्रविजय के पुत्र महानेमि को शौर्यपुर का तथा उग्रसेन के पुत्र धर को मथुरा का राज्य दिया । सूर्यास्त के समय श्री अरिष्टनेमि की प्राज्ञा से मातलि ने सौधर्म स्वर्ग की मोर प्रस्थान किया और यादव-सेना अपने शिविर की ओर लोट पड़ी। उसी समय तीन विद्यारियों ने नभोमार्ग से पाकर समद्रविजय को सूचना दी कि जरासन्ध के सहायतार्थ इस युद्ध में सम्मिलित होने हेतु प्राने वाले वैतादयगिरि के विविध विद्यानों के बल से अजेय विद्याधर राजानों को वसुदेव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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