SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ श्रमात्य हंस की जरासंध को सलाह भुजा पर जन्माभिषेक के समय देवताओं द्वारा बाँधी गई अस्त्रों के प्रभाव का निराकरण करने वाली प्रौषधि वसुदेव को प्रदान की ।' श्रमात्य हंस की जरासन्ध को सलाह गुप्तचरों द्वारा यादवों की सेना के आगमन का समाचार सुन कर जरासन्ध के हंस नामक अमात्य ने जरासन्ध को समझाने का प्रयास करते हुए कहा - " त्रिखण्डाधिपते ! अपने हित तथा श्रहित की मन्त्ररणा के पश्चात् ही प्रारम्भ किया हुआ कार्य श्रेयस्कर होता है। बिना मन्त्ररणा किये कार्य करने के फलस्वरूप कंस काल का ग्रास बन गया । याद कीजिये, आपकी उपस्थिति में ही रोहिणी के स्वयंवर के समय अकेले वसुदेव ने सब राजाओं को पराजित कर दिया था । वसुदेव से भी बलिष्ठ समुद्रविजय ने अनेक बार आपकी सेनाओं की रक्षा की है। अब तो उनकी शक्ति में पहले से भी अधिक अभिवृद्धि हो चुकी है।" "वसुदेव के पुत्र कृष्ण और बलराम दोनों ही प्रतिरथी हैं । इन दोनों का प्रबल प्रताप और ऐश्वर्य देखिये कि स्वयं वैश्रवरण ने इनके लिये अलका सी अनुपम द्वारिकापुरी का निर्मारण किया है । महाकाल के समान प्रबल पराक्रमी भीम और अर्जुन, बलराम और कृष्ण के समान बल वाले शाम्ब एवं प्रद्युम्न प्रादि अगणित अजेय योद्धा यादव - सेना में हैं। यादव सेना के प्रन्यान्य वीरों की नाम पूर्वक गणना की आवश्यकता नहीं, अकेले अरिष्टनेमि को ही ले लीजिये । वे एकाकी केवल अपने ही भुजबल से समस्त पृथ्वी को जीतने में समर्थ हैं ।" "इधर आपकी सेना में सबसे उच्चकोटि के योद्धा शिशुपाल और रुक्मी हैं, जिनका बल प्राप रुक्मिणी हरण के समय देख चुके हैं कि किस तरह हलधर के हाथों वे पराजित हुए ।” " दुर्योधन और शकुनि कायरों की तरह केवल छल-बल ही जानते हैं, अतः उनकी वीरों में कहीं गणना ही नहीं की जा सकती । कर अथाह समुद्र में मुट्ठी भर शक्कर के समान है क्योंकि यादव सेना में एक करोड़ महारथी हैं ।" "हमारी सेना में केवल आप ही एक प्रतिरथी हैं जबकि यादव- सेना में श्री अरिष्टनेमि, कृष्ण और बलराम ये तीन प्रतिरथी हैं । अच्युतेन्द्र प्रादि सभी सुरेन्द्र जिनके चरणों में भक्तिपूर्वक सिर झुकाते हैं, भला उन अरिष्टनेमि के साथ युद्ध करने का दुस्साहस कौन कर सकता है ? " २ १ तदा च वसुदेवाय प्रददेऽरिष्टनेमिना । जन्मस्नात्रे सुरैर्दोष्णि, बद्धोषध्यस्त्रवारणी ।। - [त्र. श. पु. च, पर्व ८, स. ७ - श्लो. २०६ ] २ नेमिः कृष्णो बलश्चातिरथाः परबले त्रयः । त्वमेक एव स्वबले बलयोर्महदन्तरम् ॥ अच्युताद्याः सुरेन्द्रा यं, नमस्कुर्वन्ति भक्तितः । तेन श्री नेमिना सार्धं, युद्धाय प्रोत्सहेव ।। [त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र प. ८ स. ७ श्लो. २२०-२१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy