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________________ दोनों ओर युद्ध की तैयारियाँ ] रणक्षेत्र के लिए उपयुक्त समतल करा समुद्रविजय ने सेना का पड़ाव डाल दिया । " भगवान् श्री अरिष्टनेमि ३५१ भूमि देख, वहां पर सैन्य शिविरों का निर्मारण यादवों की सेना के पड़ाव से आगे अर्थात् सेनपल्ली ग्राम से ४ योजन की दूरी पर जरासन्ध की सेना पड़ाव डाले हुए थी । यादव सेना ने जिस समय सेनपल्ली में पड़ाव डाला उस समय अपने भ्रमणकाल में वसुदेव द्वारा उपकृत कतिपय विद्याधर- पति अपनी सेनाओं के साथ यादवों की सहायता के लिए वहाँ आये और उन्होंने समुद्रविजय को प्ररणाम कर निवेदन किया- " आपके महामहिम यादव कुल में यों तो महापुरुष अरिष्टनेमि एकाकी ही समस्त विश्व का त्राण और विनाश करने में समर्थ हैं, कृष्ण और बलदेव जैसे अनुपम बलशाली व प्रद्युम्न, शाम्ब आदि करोड़ों योद्धा हैं, वहां हमारे जैसे लोग आपकी सहायता कर ही क्या सकते हैं । तथापि हम भक्तिवश इस अवसर पर आपकी सेवा में आ गये हैं. अतः आप हमें अपने सामन्त समझ कर आज्ञा दीजिये कि हम भी आपकी यथाशक्ति सेवा करें | कृपा कर आप वसुदेव को हमारा सेनापति रखिये और शाम्ब एवं प्रद्युम्न को वसुदेव की सहायतार्थ हमारे साथ रखिये ।" उन विद्याधरों ने समुद्रविजय से यह भी निवेदन किया "वैताढ्य गिरि के अनेक शक्तिशाली विद्याधर- राजा मगधराज जरासन्ध के मित्र हैं और वे जरासन्ध की इस युद्ध में सहायता करने के लिये अपनी सेनाओं के साथ आ रहे हैं । आप हमें आज्ञा दें कि हम उन विद्याधर पतियों को वैताढ्य गिरि पर ही युद्ध करके उलझाये रखें।" समुद्रविजय ने कृष्ण की सलाह से वसुदेव, शाम्ब और प्रद्युम्न को विद्याधरों के साथ रहकर वैताढ्य गिरि के जरासन्ध-समर्थक विद्याधर राजाश्र के साथ युद्ध करने का आदेश दिया । उस समय भगवान् अरिष्टनेमि ने अपनी १ (क) कइवय पयारणएहि च पत्ता सरस्सतीए तीरासण्णं सिरणवल्लियाहियारणं गामं ति । तत्थ य समथल समरजोग्ग भूमिभागम्मि प्रावासियो समुद्दविजयो त्ति । [ चउवन म. पु. च., पृ. १८६ ] (ख) पंच चत्वारिंशतं तु योजनानि स्वकात् पुरात् । गत्वा तस्थौ सेनपल्ल्यां, ग्रामे संग्राम कोविदः || Jain Education International [ त्रिषष्टि शलाका पु. च., पर्व ८, स. ७, श्लो. १६६ ] २ प्रर्वान् जरासंघ सैन्याच्चतुभिर्योजनः स्थिते । [त्रिषष्टि श. पु. च., प. ८, सं. ७, श्लो. १६७ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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