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और कंस को वचन-दान] भगवान् श्री अरिष्टनेमि
३४३ तथा मष्टिक नामक दो दुर्दान्त मल्लों को तैनात किया । पर कृष्ण और बलराम ने उन दोनों मल्लों और मत्त हाथियों को मौत के घाट उतार दिया।
अपने षड्यन्त्र को विफल हुमा देखकर कंस बड़ा क्रुद्ध हुआ । उसने अपने योद्धाओं को आदेश दिया कि वे कृष्ण और बलराम को तत्काल मार डालें। तत्क्षण कंस के अनेक सैनिक कृष्ण और बलराम पर टूट पड़े। महाबली बलराम कंस के सैनिकों का संहार करने लगे और कृष्ण ने क्रुद्ध शार्दूल की तरह छलांग भर कंस को राजसिंहासन से पृथ्वी पर पटक कर पछाड़ डाला।
इस प्रकार कृष्ण ने कंस का वध कर डाला जिससे कि कंस के अत्याचारों से त्रस्त प्रजा ने सुख की सांस ली।
कंस के वध से जरासंध का प्रकोप कंस के मारे जाने पर महाराज समुद्रविजय ने उग्रसेन को कारागार से मुक्त कर अपने भाइयों तथा बलराम एवं कृष्ण के परामर्श से उन्हें मथुरा के राजसिंहासन पर बिठाया । उग्रसेन ने भी अपनी पुत्री सत्यभामा का श्रीकृष्ण के साथ बड़ी धूमधाम से विवाह कर दिया।
अपने पति कंस की मृत्यु से क्रुद्ध हो जीवयशा यह कहती हुई राजगृह (कुसुमपुर)' की अोर प्रस्थान कर गयी कि बलराम कृष्ण और दशाों का संतति सहित सर्वनाश करके ही वह शान्त बैठेगी, अन्यथा अम्नि-प्रवेश कर आत्मदाह कर लेगी।
जीवयशा ने राजगृह पहंचकर रोते-रोते, अपने पिता जरासंध को मनि अतिमक्तक की भविष्यवाणी से लेकर कृष्ण द्वारा कंसवध तक का सारा विवरण कह सुनाया।
जरासंध सारा वृत्तान्त सुनकर अपनी पुत्री के वैधव्य से बड़ा दुःखित हुप्रा । उसने जीवयशा को आश्वस्त करते हुए कहा -"पुत्री ! तू मत रो। अब तो सब ही यादवों की स्त्रियाँ रोगी । मैं यादवों को मारकर पृथ्वी को यादवविहीन कर दूंगा।"
कालकुमार द्वारा यादवों का पीछा और अग्नि-प्रवेश अपनी पुत्री को आश्वस्त कर जरासंध ने अपने पुत्र एवं सेनापति कालकुमार को मादेश दिया कि वह पांच सौ राजाओं और एक प्रबल एवं विशाल सेना के साथ जाकर समस्त यादवों को मौत के घाट उतार दे। १ 'चउप्पन्न महापुरिस चरियं' में कुसुमपुर को जरासंध की राजधानी बताया गया है । यथा" कुसुमपुरे पयरे जरासंधो महाबलपरक्कमो राया। [पृ० १८१]
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