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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [ वसुदेव-देवकी विवाह 'देवकी स्वप्नफल सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई और वसुदेव से एकान्त में बोली - "देव ! कृपा कर इस सातवें गर्भ की रक्षा करना, इसमें जो वचन भंग का पाप होगा वह मुझे हो, पर एक पुत्र तो मेरा जीवित रहना ही चाहिए ।" ३४२ वसुदेव ने देवकी को प्राश्वस्त किया । नव भास पूर्ण होने पर देवकी ने कमलदलसम श्याम कान्ति वाले महान् तेजस्वी बालक को जन्म दिया । प्रसवकाल में देवकी की संतान का स्थानान्तरण न हो, इस शंका से कंस ने पहरेदार नियुक्त कर रखे थे । पर पुण्य प्रभाव से देवकी ने जब पूर्ण काल में तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया, उस समय दिव्य प्रभाव से पहरेदार निद्राधीन हो गये । ज्ञात कर्म होने पर वसुदेव जब बालक को गोकुल की ओर ले जाने लगे, उस समय मन्द मन्द वर्षा होने लगी । देवता ने अदृश्य छत्र धारण किया और दोनों ओर दो दिव्य ज्योतियाँ जगमगाती हुई साथ-साथ चलने लगीं । वसुदेव निर्बाध गति से अँधेरी रात में कृष्ण को लिए चल पड़े और यमुना नदी को सरलता से पार कर व्रज पहुँचे । वहाँ नन्द गोप की पत्नी यशोदा ने उसी समय एक बालिका को जन्म दिया था । यशोदा को बालक अर्पित किया और बालिका को लेकर वसुदेव तत्काल अपने भवन में लौट आये तथा देवकी के पास कन्या को रख कर शीघ्र अपने शयनागार में चले गये । कंस की दासियां जागृत हुईं और सद्य:जाता उस बालिका को लेकर कंस की सेवा में उपस्थित हुईं। कंस भी अपना भय टला समझ कर प्रसन्न हुआ । ' कंस को देवकी की संतान के हाथों अपनी मृत्यु होने का भय था अतः वह नहीं चाहता था कि देवकी की कोई संतान जीवित बची रहे । इसी कारण श्रीकृष्ण की सुरक्षा हेतु उनका लालन-पालन गोकुल में किया गया । बालक कृष्ण के अनेक अद्भुत शौर्य और साहसपूर्ण कार्यों की कहानी कंस ने सुनी तो उस को संदेह हो गया कि कहीं यही बालक बड़ा होने पर उसका प्राणान्त न कर दे, अतः उसने बालक कृष्ण को मरवा डालने के लिये अनेक षड्यन्त्र किये । कंस ने अपने अनेक विश्वस्त मायावी मित्रों एवं सहायकों को छद्म वेष में गोकुल भेजा। बालक कृष्ण को मार डालने के लिए अनेक बार छल-प्रपंच पूर्ण प्रयास किये गये, पर हर बार श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले वे मायावी ही बलराम और कृष्ण द्वारा मार डाले गये । अन्त में कंस ने मथुरा में अपने राजप्रासाद में मल्लयुद्ध का आयोजन किया और कृष्ण एवं बलराम को मारने के लिए मदोन्मत्त दो हाथियों व चारपूर १ वसुदेव हिण्डी के आधार पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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