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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ वसुदेव-देवकी विवाह
'देवकी स्वप्नफल सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई और वसुदेव से एकान्त में बोली - "देव ! कृपा कर इस सातवें गर्भ की रक्षा करना, इसमें जो वचन भंग का पाप होगा वह मुझे हो, पर एक पुत्र तो मेरा जीवित रहना ही चाहिए ।"
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वसुदेव ने देवकी को प्राश्वस्त किया । नव भास पूर्ण होने पर देवकी ने कमलदलसम श्याम कान्ति वाले महान् तेजस्वी बालक को जन्म दिया ।
प्रसवकाल में देवकी की संतान का स्थानान्तरण न हो, इस शंका से कंस ने पहरेदार नियुक्त कर रखे थे । पर पुण्य प्रभाव से देवकी ने जब पूर्ण काल में तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया, उस समय दिव्य प्रभाव से पहरेदार निद्राधीन हो गये । ज्ञात कर्म होने पर वसुदेव जब बालक को गोकुल की ओर ले जाने लगे, उस समय मन्द मन्द वर्षा होने लगी । देवता ने अदृश्य छत्र धारण किया और दोनों ओर दो दिव्य ज्योतियाँ जगमगाती हुई साथ-साथ चलने लगीं ।
वसुदेव निर्बाध गति से अँधेरी रात में कृष्ण को लिए चल पड़े और यमुना नदी को सरलता से पार कर व्रज पहुँचे । वहाँ नन्द गोप की पत्नी यशोदा ने उसी समय एक बालिका को जन्म दिया था । यशोदा को बालक अर्पित किया और बालिका को लेकर वसुदेव तत्काल अपने भवन में लौट आये तथा देवकी के पास कन्या को रख कर शीघ्र अपने शयनागार में चले गये । कंस की दासियां जागृत हुईं और सद्य:जाता उस बालिका को लेकर कंस की सेवा में उपस्थित हुईं। कंस भी अपना भय टला समझ कर प्रसन्न हुआ । '
कंस को देवकी की संतान के हाथों अपनी मृत्यु होने का भय था अतः वह नहीं चाहता था कि देवकी की कोई संतान जीवित बची रहे ।
इसी कारण श्रीकृष्ण की सुरक्षा हेतु उनका लालन-पालन गोकुल में किया गया । बालक कृष्ण के अनेक अद्भुत शौर्य और साहसपूर्ण कार्यों की कहानी कंस ने सुनी तो उस को संदेह हो गया कि कहीं यही बालक बड़ा होने पर उसका प्राणान्त न कर दे, अतः उसने बालक कृष्ण को मरवा डालने के लिये अनेक षड्यन्त्र किये ।
कंस ने अपने अनेक विश्वस्त मायावी मित्रों एवं सहायकों को छद्म वेष में गोकुल भेजा। बालक कृष्ण को मार डालने के लिए अनेक बार छल-प्रपंच पूर्ण प्रयास किये गये, पर हर बार श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले वे मायावी ही बलराम और कृष्ण द्वारा मार डाले गये ।
अन्त में कंस ने मथुरा में अपने राजप्रासाद में मल्लयुद्ध का आयोजन किया और कृष्ण एवं बलराम को मारने के लिए मदोन्मत्त दो हाथियों व चारपूर १ वसुदेव हिण्डी के आधार पर ।
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