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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [वसुदेव-देवकी विवाह होते हुए समद्रविजय ने वसदेव से कहा-"कुमार ! तुम बहुत घूम चुके हो, अब सब कुलवधुओं को साथ लेकर शीघ्र ही घर आ जाना ।"
कंस ने भी विदा होते समय वसदेव से कहा-"देव सूरसेण राज्य आपका ही है, मैं वहां पाप द्वारा रक्षित-मात्र हूँ।" ।
वसदेव और रोहिणी बड़े आनन्द के साथ अरिष्टपूर में रहे। वहां रहते हुए रोहिगी ने एक रात्रि में चार शुभ-स्वप्न देखे और समय पर चन्द्रमा के समान गौरवर्ण पुत्र को जन्म दिया। रोहिणी के इस पुत्र का नाम बलराम रखा गया।
तदनन्तर कुछ समय अरिष्टपुर में रहने के पश्चात् वसुदेव ने अपनी सामली, नीलयशा, मदनवेगा, प्रभावती, विजयसेना, गन्धर्वदत्ता, सोमश्री, धनश्री, कपिला, पद्मा, अश्वसेना, पोंडा, रत्तवती, प्रियंगुसुदरी, बन्धुमती. प्रियदर्शना, केतुमती, भद्रमित्रा, सत्यरक्षिता, पद्मावती, पद्मश्री, ललितश्री और रोहिणी---इन रानियों के साथ चलकर सोरियपुर प्रा पहुँचे ।
कुछ समय पश्चात् कंस वसुदेव के पास आया और बड़े ही अनुनय-विनय के साथ प्रार्थना कर उन्हें सपरिवार मथुरा ले गया। वसुदेव भी मथुरा के राजप्रासादों में बड़े आनन्द के साथ रहने लगे।'
वसुदेव-देवको विवाह और कंस को वचन-दान एक दिन कंस के आग्रह से महाराज वसूदेव देवक राजा की पुत्री देवकी को वरण करने के लिए मत्तिकावती नगरी की ओर चले।। बीच में ही उन्हें नेम-नारद मिले। वसुदेव ने उनसे देवकी के बारे में पूछा तो नारद ने उसके रूप, गुण और शील की बड़ी प्रशंसा की। यह सुनकर वसुदेव ने नेम-नारद से कहा-"प्रार्य ! जैसा देवकी का वर्णन आपने मेरे सामने किया है, वैसे ही देवकी के सामने मेरा परिचय भी रखना।" ... "एवमस्तु" कह कर नारद वहां से राजा देवक के यहां गये और देवकी के सामने वसुदेव के रूप, गुण की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
वसुदेव कंस के साथ मृत्तिकावती पहुँचे और कंस द्वारा वसुदेव के गुणवर्णन से प्रभावित होकर देवक ने शुभ दिन में वसुदेव के साथ देवकी का विवाह कर दिया।
वसुदेव के सम्मान में देवक ने बहुत सा धन, दास, दासी और कोटि गावों का गोकुल, जो कि नन्द को प्रिय था, कन्यादान-दहज के रूप में अर्पित १ वसुदेव हिण्डी। २ कंसेण तस्स दिना, पित्तिय धूया य देवकी णाम। [१० म. पु. ५० पृ० १८३]
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