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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [वसुदेव का राजामों का क्षोभ उग्र रूप धारण करने लगा। महाराज दन्तवक्र ने गरजते हुए कोशलाधीश को कहा- 'तुम्हारी कन्या यदि एक गायक को ही चाहती थी तो इन उच्चकुलीन बड़े-बड़े क्षत्रिय राजाओं को क्यों आमन्त्रित किया गया ? कोई क्षत्रिय इस अपमान को सहन नहीं करेगा।" कोशलपति ने कहा-"स्वयंवर में कन्या को अपना पति चुनने की स्वतन्त्रता है, इसके अनसार उसने जिसको योग्य समझा, उसे अपना पति बना लिया। अब परदारा की आकांक्षा करना क्या किसी कुलीन के लिए शोभाप्रद है ?" दन्तवक ने कहा-"तुमने अपनी कन्या को स्वयंवर में दिया है, यह ठीक है, पर मर्यादा का अतिक्रमण तो नहीं होना चाहिये । अत: तुम्हारी कन्या इस वर को छोड़कर किसी भी क्षत्रिय का वरण करे।"" वसुदेव ने दन्तवक को सम्बोधित करते हुए कहा-"दन्तवक्र ! जैसा तुम्हारा नाम टेढ़ा है वैसी ही टेढ़ी तुम बात भी कर रहे हो। क्या क्षत्रियों के लिये कला-कौशल की शिक्षा वजित है, जो तुम मेरे हाथ में पणव को देखने मात्र से ही समझ रहे हो कि मैं क्षत्रिय नहीं हं ?" इस पर दमघोष ने कहा--"प्रज्ञातवंश वाले को कन्या किसी भी दशा में नहीं दी जा सकती । अतः राजकुमारी इसे छोड़कर अन्य किसी भी क्षत्रिय का वरण करे।' विदुर द्वारा यह मत प्रकट करने पर कि इनसे इनके वंश के सम्बन्ध में पूछ लिया जाय; वसदेव ने कहा- 'क्योंकि सब विवाद में लगे हुए हैं, अतः कुल-परिचय के लिए यह उपयुक्त समय नहीं है, अब तो मेरा बाहुबल ही मेरे कुल का परिचय देगा।" इतना सुनते ही जरासन्ध ने क्रुद्ध-स्वर मे कहा-"पकड़ लो राजा रुधिर को।" कोशलपति ने भी अपनी सेना तैयार कर ली । स्वयम्बर में एकत्रित सब राजानों ने मिलकर उन पर प्राक्रमण किया और भीषण संग्राम के पश्चात् कोशलपति को घेर लिया। यह देख परिजयपुर के विद्याधर-राजा 'दधिमुख' के रथ में आरूढ़ हो वसूदेव ने सबको ललकारा। वसुदेव के इस अदम्य साहस और तेज से राजा लोग बड़े विस्मित हए और कहने लगे "मोह ! कितना इसका साहस है जो सब राजाओं के समक्ष एकाकी युद्ध हेतु सन्नद्ध है,।" १ वसुदेव हिण्डी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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