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सम्मोहक व्यक्तित्व भगवान् श्री अरिष्टनेमि
३३७ नहीं करेंगे, अब मुझे निःशंक हो निर्विघ्न रूप से स्वच्छन्द-विचरण करना चाहिए।"
रात भर विश्राम कर वसुदेव ने दूसरे दिन वहाँ से प्रस्थान किया और वैताढ्य गिरि की उपत्यकामों में बसे विभिन्न नगरों और अनेक देशों में पर्यटन किया। वसुदेव ने अपने इस पर्यटन-काल में अनेक अद्भुत साहसपूर्ण कार्य किये, वेदों और अनेक विद्याओं का अध्ययन किया। वसुदेव के सम्मोहक व्यक्तित्व और अद्भुत पराक्रम पर मुग्ध हो अनेक बड़े-बड़े राजाओं ने अपनी सर्वगण-सम्पन्न सुन्दर कन्याओं का उनके साथ विवाह कर विपुल सम्पदामो से उन्हें सम्मानित किया।
एकदा देशाटन करते हए वसुदेव कोशल जनपद के प्रमुख नगर अरिष्टपूर में पहुँचे। वहां उन्हें ज्ञात हुआ कि कोशलाधीश महाराज 'रुधिर' की अनुपम रूपगणसम्पन्ना राजकुमारी 'रोहिणी' के स्वयंवर में जरासन्ध, दमघोष, दन्तवक्र, पाण्डु, समुद्रविजय, चन्द्राभ और कंस आदि अनेक बड़े-बड़े अवनिपति आये हुए हैं. तो वसुदेव भी पणव-वाद्य हाथ में लिये स्वयंवर-मण्डप में पहुंचे और एक मंच पर जा बैठे ।'
परिचारिकारों से घिरी हुई राजकुमारी 'रोहिणी' ने वरमाला हाथ में लेकर ज्योंही स्वयंवर-मण्डप में प्रवेश किया, सारा राज-समाज उसके अनुपम सौन्दर्य की कान्ति से चकाचौंध हो चित्रलिखित सा रह गया। यह त्रैलोक्य सुन्दरी न मालूम किस का वरण करेगी, इस आशंका से सबके दिल धड़क रहे थे, सबकी धमनियों में रक्तप्रवाह उच्चतम गति को पहुंच चुका था।
जिन राजाओं के सामने रोहिणी अपने हाथों में ली हुई वरमाला के. बिना हिलाये ही आगे बढ़ गई उन राजाओं के मुख राहु-ग्रस्त सूर्य की तरह निस्तेज हो काले पड़ गये । वसुदेव ने अपने पणव पर हल्का सा मन्द-मधुर नाद किया कि रोहिणी मन्त्रमग्धा मयूरी की तरह बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं का अतिक्रमण करती हुई वसदेव की ओर बढ़ गई और उनकी ओर देखते ही उनके गले में वरमाला डाल दी व उनके मस्तक पर अक्षतकरण चढ़ाकर रनिवास में चली गई।
मण्डप में इससे हलचल मच गई । सब राजा लोग एक दूसरे से पूछने लगे-"किसको वरण किया ?" उत्तर में अनेक स्वर गूंज रहे थे--"एक गायक को।"
१ वसुदेव हिण्डी।
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