________________
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ वसुदेव का
वसुदेव ने उस अनाथ के शव को चिता पर रखकर अग्नि प्रज्वलित कर बी प्रोर श्मशान में पड़ी एक अधजली लकड़ी से माता और गुरुजनों से क्षमा मांगते हुए यह लिख दिया- "विशुद्ध स्वभाव का होते हुए भी नागरिकों ने दोष लगाया, इसलिए वसुदेव ने अपने आपको आग में जला डाला ।"
३३६
पत्र को श्मशान में एक खम्भे से बाँध कर वसुदेव त्वरित गति से वहां से चल पड़े। बड़ी लम्बी दूरी तक पथ से दूर चलते हुए वे एक मार्ग पर आये और मार्ग तय करने लगे । उस मार्ग से एक युवती गाड़ी में बैठी हुई ससुराल से अपने मातृगृह को जा रही थी । वसुदेव को देखते ही उसने अपने साथ के वृद्ध से कहा - "प्रोह ! यह परम सुकुमार ब्राह्मणकुमार पैदल चलते हुए परिश्रान्त हो गया होगा । इसे गाड़ी में बैठा लो । आज रात अपने घर पर विश्राम कर कल आगे चला जायगा ।"
वृद्ध ने गाड़ी में बैठने का आग्रह किया । गाड़ी में बैठे हुए सब की निगाहों 'छुपकर जा सकूंगा. यह सोचकर वसुदेव गाड़ी में बैठ गए। सुगाम नामक नगर में पहुँचकर स्नान, ध्यान भोजनादि से निवृत्त हो वसुदेव विश्राम करने लगे ।
पास ही के यक्षायतन में उस गांव के कुछ लोग बैठे हुए थे । कुमार ने उन्हें नगर से आए हुए लोगों द्वारा यह कहते हुए सुना - "ग्राज नगर में एक बड़ी दुःखद घटना हो गई, कुमार वसुदेव ने अग्नि प्रवेश कर आत्मदाह कर लिया । वसुदेव का वल्लभ नामक सेवक जलती हुई चिता को देखकर करुरण कन्दन करता हुआ नगर में दौड़ श्राया। लोगों द्वारा कारण पूछे जाने पर उसने कहा कि जनापवाद के डर से राजकुमार वसुदेव ने चिता में जलकर प्राणत्याग कर दिया।' इतना सुनते ही नगर में सर्वत्र चीत्कार और हाहाकार व्याप्त हो
गया ।
नागरिकों के रुदन को सुनकर नौ ही भाई तत्काल श्मशान में पहुंचे और वहां कुमार के हाथ से लिखे हुए पत्र को पढ़कर शोक से रोते-रोते उन्होंने चिता को घृत और मधु से सींचा; चन्दन, अंगर और देवदारु की लकड़ियों से श्राच्छादित कर दिया तथा उसे जलाकर प्रेतकार्य सम्पन्न कर वे सब अपने घर को लौट गये ।
यह सब सुन कर वसुदेव को चिन्ता हुई । इनके मुंह से अनायास निकल गया - "यह सांसारिक बन्धन कितना गूढ़ और रहस्यपूर्ण है, चलो, मेरे, प्रात्मीयजनों को विश्वास हो गया कि वसुदेव मर गया । अब वे मेरी कोई खोज
१ बसुदेव हिण्डी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org