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सम्मोहक व्यक्तित्व ]
भगवान् श्री प्ररिष्टनेमि
आशा में नगर की युवतियाँ सूर्योदय से पूर्व ही वातायनों, गवाक्षों, जालीझरोखों और गृह-द्वारों पर जा डटती हैं और यह कहती हुई कि "जब कुमार यहाँ से निकलेंगे तो उन्हें देखेंगी" सारा दिन चित्रलिखित पुतलियों की तरह वहीं बैठी बैठी बिता देती हैं तथा रात्रि में निद्रावस्था में भी बार-बार चौंकचौंक कर बड़बड़ाती हैं-प्ररे ! यह रहे वसुदेव, देखो-देखो ! यही तो हैं. वसुदेव ।"
रमरिणय शाक, पत्र, फलादि खरीदने जाती हैं तो वहाँ भी उनका यही ध्यान रहता है, कहती हैं- "ला वसुदेव दे दे ।" बच्चे जब क्रन्दन करते हैं तो कुमार के श्रागमन - पथ पर दृष्टि डाले युवतियां बच्चों को गाय के बछड़े समझकर रस्सियों से बाँध देती हैं। इस प्रकार प्रायः सभी नगर-वधुएं उन्माद की अवस्था को प्राप्त हो चुकी हैं, गृहस्थी का सारा कामकाज चौपट हो चुका है, देव भोर प्रतिथि-पूजन का प्रमुख गृहस्थाचार शिथिल हो नष्टप्रायः हो चुका है । अत: देव ! कृपा कर ऐसा प्रबन्ध कीजिये कि कुमार बार-बार उद्यान में नहीं जायें ।"
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इस पर महाराज समुद्रविजय ने उन लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा"आप लोग विश्वस्त रहें, मैं कुमार को ऐसा करने से रोक दूंगा ।" जो परिजन वहाँ उपस्थित थे, उन्हें महाराज ने निर्देश दिया कि इस सम्बन्ध में कुमार से कोई कुछ भी नहीं कहे ।
दासी के मुंह से यह सब सुनकर वसुदेव बड़े चिन्तित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि अब उनका वहाँ रहना श्रेयस्कर नहीं है । उन्होंने अपना स्वर और वेश बदलने की गोलियां तैयार कीं और सन्ध्या- समय वल्लभ नामक दास के साथ नगर के बाहर चले आये । श्मशान में एक शव को पड़ा देखकर वसुदेव ने अपने दास वल्लभ से कहा - "लकड़ियां लाकर चिता तैयार कर ।""
सेवक ने चिता तैयार कर दी। वसुदेव ने सेवक से फिर कहा - "अरे ! जा मेरे शयनागार से मेरा रत्नकरण्डक ले प्रा, द्रव्य का दान कर मैं अग्नि प्रवेश. करता हूं।" वल्लभ ने कहा- "स्वामिन् ! यदि मापने यही निश्चय किया है तो आपके साथ मैं भी अग्नि प्रवेश करूंगा ।"
वसुदेव ने कहा - " जैसे तुझे अच्छा लगे वही करना, पर खबरदार इस रहस्य का भेद किसी को मत देना । रत्नकरण्डक लेकर शीघ्र लौट श्रा ।"
"अभी लाया महाराज !” यह कहकर वल्लभ शीघ्रता से नगर की ओर दौड़ा ।
१ वसुदेव हिण्डी ।
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