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________________ ३३२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास वसुदेव की सेवा में कंस एक दिन जरासन्ध ने समुद्रविजय के पास दूत भेजा और कहलवाया"सिंहपुर के उद्दण्ड राजा सिंह रथ को जो पकड़ कर मेरे पास उपस्थित करेगा, उसके साथ मैं अपनी पुत्री जीवयशा का विवाह करूगा और उपहार में एक नगर भी दूंगा।" वसदेव को जब इस बात की सचना मिली तो उन्होंने समुद्रविजय से प्रार्थना की-“देव ! आप मुझे प्राज्ञा दें, मैं सिंहरथ को बांध कर आपकी सेवा में उपस्थित करूंगा।" समुद्रविजय ने कुमार वसदेव के आग्रह और उत्साह को देखकर सबल सेना के साथ उन्हें युद्ध के लिये विदा किया। वसुदेव का युद्ध-कौशल वसुदेव का सेना सहित प्रागमन सुनकर सिंहरथ भी अपने दल-बल के साथ रणांगण में प्रा डटा । दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हया । सिंहरथ के प्रचण्ड पराक्रम और तीक्षण प्रहारों से वसुदेव की सेना के पैर उखड़ने लगे। यह देख कर वसदेव ने अपने सारथी कंस को आदेश दिया कि वह उनके रथ को सिंहरथ की ओर बढ़ावे । कंस ने सिंहरथ की ओर रथ बढ़ाया और वसुदेव ने देखते ही देखते शरवर्षा की झड़ी लगाकर सिंह रथ के सारथी और घोड़ों को बाणों से बींध दिया । उन्होंने अपने रण-कौशल और हस्तलाघव से सिंहरथ को हतप्रभ कर दिया । कंस ने भी परशु-प्रहार से सिंहरथ के रथ के पहियों को चकनाचूर कर दिया और झपट कर सिंह रथ को बन्दी बना लिया एवं वसुदेव के रथ में ला रखा । यह देख सिंहरथ की सारी सेना भाग छूटी। वसदेव सिंहरथ को लेकर सोरियपुर लौट आये और समुद्रविजय के समक्ष उसे बन्दी के रूप में उपस्थित किया ।' किशोरवय के कुमार वसुदेव की इस वीरता से समुद्रविजय बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उल्लास एवं उत्सव के साथ कुमार का नगर-प्रवेश करवाया ।' कंस का जीवयशा से विवाह समद्रविजय ने एकान्त पाकर वसदेव से कहा-"वत्स ! मैंने कोष्टकी (नैमित्तिक) से जीवयशा के लक्षणों के सम्बन्ध में पूछा तो ज्ञात हा कि जीवयशा उभय-कुलों का विनाश करने वाली है। जीवयशा से विवाह करना श्रेयस्कर प्रतीत नहीं होता।" १ 'चउवन्न महापुरिम चरियं' में वसुदेव द्वारा सिंहरथ को सीधा जरासंघ के पास ले जाने का उल्लेख है। २ वसुदेव हिण्डी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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