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________________ ३३० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भ० नेमि० का पैतृक कुल भगवान नेमिनाथ का पैतृक कुल पूर्वकथित इन्हीं हरिवंशीय महाराज सौरी से 'अन्धकवृष्णि' और भोगवृष्णि, दो पराक्रमी पुत्र हुए । 'अन्धकवृष्णि' के 'समुद्रविजय', अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द और वसुदेव ये दश पुत्र थे' जो दशाह नाम से प्रसिद्ध हुए। इनमें बडे समद्रविजय और छोटे वसुदेव ये दो विशिष्ट प्रतिभासम्पन्न एवं प्रभावशाली थे । समुद्रविजय बड़े न्यायशील, उदार एवं प्रजावत्सल राजा हुए। अपने छोटे भाई वसुदेव का लालन-पालन, रक्षण, शिक्षण एवं संगोपन इनकी देख-रेख में ही होता रहा । समय पाकर वसुदेव ने अपने पराक्रम से देश-देशान्तर में ख्याति प्राप्त की। सौरिपुर के एक भाग में उनका भी राज्यशासन रहा । वसुदेव का विशेष परिचय यहां दिया जा रहा है । वसुदेव का पूर्वभव प्रौर बाल्यकाल कुमार वसुदेव अत्यन्त रूपवान्, पराक्रमी और लोकप्रिय थे । पूर्व जन्म में नन्दीषेण ब्राह्मण के भव में माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् कुटुम्बीजनों ने उसे घर से निकाल दिया। एक माली ने उसका पालन-पोषण कर बड़ा किया और अपनी पुत्रियों में से किसी एक से उसका विवाह करने का उसे आश्वासन दिया किन्तु जब तीनों पुत्रियों द्वाग वह पमन्द नहीं किया जाकर ठुकरा दिया गया, तो उसे बड़ी प्रात्मग्लानि हुई। नन्दीषेण ने घने बीहड़ जंगल में जाकर फांसी डालकर मरना चाहा । वहां किसी मुनि ने देखकर उसे आत्महत्या करने से रोका और उपदेश दिया। १ समुद्दविजयो, प्रक्खोहो, थिमियो, सागरो हिमवंतो। अयलो धरणो, पूरणी, अभिचन्दो वसुदेवो ति ।। [वसु० हि० पृ० ३५८] २ मोरियपुरम्मि नयरे, पासी राया समुद्दविजमोत्ति । तस्सासि अग्गमहिमी. सित्ति देवी अणुज्जगी ।। तेसि पुत्ता चउरो, अरिट्टनेमि तहेव रहनेमी । त इप्रो अ सच्चनमी, चउत्थम्रो होइ दढनेमी ।। जो मा रिट्ठनेमि, बावीस इमो अहेसि सो अरिहा । रहने मी सच्च ने मी. एए पत्तेयबुद्धाउ ।। [उत्तराध्ययन निo, गा०. ४४३-४४५] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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